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. तीर्थङ्कर चरित्र ...
"महाराजाधिराज दमितारि ! मन्त्रियों ! सेनापतियों कुमारों ! सामंतों ! सुभटों एवं पुराध्यक्षों ! आप सब स्वस्थ हो कर सुनो।"
" मैं महावीर अपराजित के प्रताप से सुशोभित अनन्तवीर्य, राजकुमारी कनकधी को ले कर जा रहा हूँ। यदि किसी की इच्छा मुझे रोकने की हो, या राजकुमारी को मुझ से लेने की हो, तो वह मेरे सामने आवे। मेरे जाने के बाद यह कहने की आवश्यकता नहीं रहनी चाहिये कि-"अनन्तवीर्य, राजकुमारी को चुरा कर ले गया।"
इस प्रकार उद्घोषणा कर के वैक्रिय-शक्ति से विमान बना कर उस में बैठे और तीनों आकाश-मार्ग से प्रस्थान कर गए। जब दमितारि ने यह उद्घोषणा सुनी, तो सन्न रह गया। उसने तत्काल अपने योद्धाओं को उनके पीछे भेजा। सेना को अपनी ओर आते देख, दोनों भ्राता सावधान हो कर युद्ध के लिए जम गए । अचानक ही उन्हें हल, शाङ्ग धनुष आदि दिव्य-शस्त्र स्वतः प्राप्त हो गए। दमितारि की सेना शस्त्र-वर्षा करने लगी। किन्तु जब महाराज अनन्तवीर्य ने शस्त्र-प्रहार प्रारंभ किया, तो दमितारि की सेना भाग खड़ी हुई । सेना के भागते ही दमितारि स्वयं युद्ध करने आया। उसके आते ही सेना भी पुनः आ डटी। इधर अनन्तवीर्य भी विद्या-शक्ति से सेना तय्यार कर के युद्ध-क्षेत्र में डट गया। विद्या के बल से दुर्मद हुए दमितारि के सुभट जब पुनः युद्ध-रत हुए, तो वीरवर अनन्तवीर्य ने पंचजन्य शंख का नाद किया। इस भयंकर नाद को सुन कर सभी सुभट धसका खा कर भूमि पर गिर पड़े। यह दशा देख कर दमितारि स्वयं रथारूढ़ हो कर आगे आया और शस्त्र-प्रहार करने लगा। अन्त में अपने ही चक्ररत्न नामक महाशस्त्र से दमितारि मारा गया और उसके समस्त राज्य के स्वामी महाराजाधिराज अनन्तवीर्य हुए। वे अर्धचक्री वासुदेव पद पाये।
पूर्वभव वर्णन
दमितारि पर विजय प्राप्त कर के महाराजा अनन्तवीर्य, ज्येष्ठ-बन्धु और राजकुमारी कनकश्री के साथ रवाना हुए । मार्ग में प्रतिमाधारी मुनिराज श्री कीर्तिधर स्वामी के दर्शन हुए। उन्होंने उसी दिन घातिकर्मों को क्षय कर के केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त किया था और देवगण केवल-महोत्सव कर रहे थे। वासुदेव को यह देख कर परम प्रसन्नता हुई । वे और बलदेव आदि केवली भगवान् की प्रदक्षिणा और नमस्कार कर के बैठ गए
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