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________________ ३२० तीर्थङ्कर चरित्र मनोरंजन करने लगे। यों विविध प्रकार के उत्तमोत्तम अभिनय से दोनों छद्मवेशी नट सुन्दरियों ने महाराजाधिराज को मोह लिया । नरेश मानने लगे कि ये दोनों दासियाँ कला में पारंगत हैं और संसार में रत्न के समान है । महाराजा दमितारि के 'कनक श्री' नाम की वय प्राप्त कन्या थी । नरेश ने सोचा कि उच्च शिक्षा देने में ये दोनों नट- सुन्दरियाँ पूर्ण समर्थ है। उसने दूसरे दिन से ही दोनों को पुत्री की शिक्षिका के रूप में नियुक्त कर दिया । यौवनवय को प्राप्त, परम सुन्दरी कनकश्री को देख कर अनन्तवीर्य मुग्ध हो गए। वे दोनों भ्राता उसे शिक्षा देते और प्रसंगोपात महाराजा अनन्तवीर्य का यशोगान भी करते रहते थे। उनके रूप, शौर्य, औदार्य आदि गुणों का वर्णन सुन कर राजकुमारी का मन उनकी ओर फिराया। बार-बार अनन्तवीर्य की प्रशंसा सुन कर एक दिन कनकश्री ने पूछा -- "जिनकी तुम बार-बार प्रशंसा करते हो, वह अनन्तवीर्य कौन है ?" नटीरूपधारी महाबाहु अपराजित बोले; " शुभा नगरी के महाप्रतापी स्वर्गीय नरेश स्तिमितसागर के पुत्र और महाबाहु अपराजित के कनिष्ट भ्राता, महाराज अनन्तवीर्य इस सृष्टि में अद्वितीय योद्धा, मदनावतार एवं महामानव हैं । वह महाबली, शत्रुओं के गर्व को नष्ट करने वाला तथा शरणागतवत्सल है। अधिक क्या कहूँ, उसके समान इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं है । वह पुरुषोत्तम है । हम दोनों वहीं से आई हैं।" अनन्तवीर्य की कीर्ति कथा सुन कर कनकश्री आकर्षित हो गई । उसके मन में रहा हुआ मोह जाग्रत हो गया । वह उन्हीं के विचार करने लगी। उसे विचार-मग्न देख कर अपराजित ने कहा " आप चिंता क्यों करती है ? यदि आपकी इच्छा उन्हें देखने की होगी, तो मैं तुम्हें उनके दर्शन करा दूंगी। मेरी विद्या शक्ति से में दोनों बन्धुओं को यहाँ उपस्थित कर के उनसे तुम्हें मिला दूंगी । कनकश्री यही चाहती थी । उसे आशा नहीं थी कि वह कभी उस पुरुषोत्तम को देख सकेगी । उसने कहा--" यदि आप उनके दर्शन करा दें, तो बड़ा उपकार होगा। मुझे विश्वास है कि जिस प्रकार आप कला में सर्वश्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार अन्य विद्याओं में भी सर्वोत्तम हैं । आप मेरी मनोकामना शीघ्र पूर्ण करेंगे ।" श्री की बात सुनते ही दोनों भ्राताओं ने अपना निज-स्वरूप प्रकट किया। राज कुमारी स्तंभित रह गई। अपराजित ने कहा--" भद्रे ! यह मेरा छोटा भाई और शुभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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