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________________ तीर्थङ्कर चरित्र से यहाँ तक पहुँचने में उत्पन्न कठिनाइयों का हाल पूछा, तो महेन्द्र सिंह ने विस्तारपूर्वक अपनी कष्ट कहानी सुनाई । मित्र के भीषण कष्टों और आपदाओं को सुन कर बहुत खेद हुआ । विद्याधरी ललनाओं ने महेन्द्र को स्नानादि करा कर भोजन कराया । इसके बाद महेन्द्र ने सनत्कुमार का हाल पूछा । सनत्कुमार ने सोचा- 'मेरी इस अवस्था की बात मैं स्वयं कहूँ — यह शोभनीय नहीं होगी ।' उसने अपनी बायीं ओर बैठी हुई विद्याधर शयन करने के बहाने वहाँ से हट वृत्तान्त बताते हुए कहा; - --- सुन्दरी बकुलमति से सारा वृत्तान्त सुनाने का कह कर गया। उसके जाने के बाद बकुलमति ने सनत्कुमार का २९२ " महानुभाव ! तुम सभी के देखते ही देखते अश्व द्वारा तुम्हारे मित्र का हरण होने के बाद, अश्व ने एक भयानक अटवी में प्रवेश किया । वह दौड़ता ही रहा। दूसरे दिन मध्यान्ह काल में वह क्षुधा पिपासा और गंभीर थाक से अकड़ कर खड़ा रह गया । उसके खड़े रहते ही कुमार घोड़े पर से नीचे उतरे और साथ ही घोड़ा भींत के समान नीचे गिर कर प्राण-रहित हो गया । आपके मित्र भी प्यास से व्याकुल हो रहे थे । वे पानी की खोज में इधर-उधर भटकने लगे | उन्हें पानी मिलना कठिन हो गया । वे व्याकुल हो गए और एक सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे जा कर उसकी शीतल छाया में लेट गए । वे पुण्यवान् एवं भाग्यशाली हैं । सद्भागी पर आपत्ति के बादल अधिक समय तक नहीं ठहर सकते । उनके लिए जंगल में भी मंगल का वातावरण बन सकता है । पुण्ययोग से उस वन के अधिष्ठायक यक्ष को कुमार की विपत्ति का भान हुआ । तत्काल यक्ष ने शीतल जल से आर्य-पुत्र के शरीर का सिंचन किया। शरीर में शीतलता पहुँचते ही वे सचेत हो गए और यक्ष द्वारा दिया हुआ पानी पी कर तृप्त हुए । उन्होंने यक्ष से पूछा- 'तुम कौन हो और यह स्वादिष्ट एवं सुगन्धित जल कहाँ से लाये ?" यक्ष ने कहा- --" "मैं इस वन में रहने वाला यक्ष हूँ । यह उत्तम जल तुम्हारे लिए मानसरोवर से लाया हूँ ।" " 'यदि आप मुझे मानसरोवर ले चलें और मैं उसमें स्नान कर लूँ, तो मेरा शरीर स्वस्थ और स्फूर्तिदायक हो सकता है । मेरी सभी पीड़ाएँ दूर हो सकती है"कुमार ने यक्ष से अनुरोध किया । यक्ष ने आर्य-पुत्र का अनुरोध स्वीकार किया और उन्हें उठा कर बात की बात में मानसरोवर ले गया । आर्य-पुत्र ने वहाँ जी भर कर जलक्रीड़ा की । Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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