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- तीर्थङ्कर चरित्र
के द्वार को दृढ़ता से बन्द करने वाली अर्गला और विश्वास रूपी वृक्ष के लिए दावानल के समान है । विद्वानों के लिए यह त्याग करने योग्य है। - भविष्य में होने वाले मल्लिनाथ तीर्थङ्कर, पूर्व-भव की सूक्ष्म माया के शल्य के कारण स्त्री-भाव को प्राप्त होंगे। इसलिए जगत् का द्रोह करने वाली माया रूपी नागिन को सरलता रूपी औषधी से जीत लेना चाहिए । इससे आनन्द की प्राप्ति होती है ।
सरलता, मुक्तिपुरी का सरल एवं सीधा मार्ग है । इसके अतिरिक्त तप, दान आदि लक्षण वाला जो मार्ग है, वह तो अवशेष मार्ग है-सरलता रूपी धोरी-मार्ग के साथ रहने वाले हैं। जो सरलता का सेवन करते हैं, वे लोक में भी प्रीति-पात्र बनते हैं और जो मायाचारी कुटिल पुरुष हैं, उनसे तो सभी लोग डरते हैं। जिनकी मनोवृत्ति सरल है, उन महात्माओं को भव-वास में रहते हुए भी स्वतः के अनुभव में आवे--ऐसा अकृत्रिम मुक्तिसुख मिलता है ?
जिनके मन में कुटिलता रूपी काँटा (खीला) खटक कर क्लेश किया करता है और जो दूसरों को हानि पहुँचाने में ही तत्पर रहते हैं, उन वञ्चक पुरुषों को सुख-शांति कहाँ से मिलेगी ?
सभी विद्याएँ प्राप्त करने पर और सभी कलाओं की उपलब्धि होने पर भी, बालक जैसी सरलता तो किसी विरले भाग्यशाली पुरुष को ही प्राप्त होती है । अज्ञ होते हुए भी बालकों की सरलता सभी के मन में प्रीति उत्पन्न करती है, तो जिस भव्यात्मा का चित्त सभी शास्त्रों के अर्थ में आसक्त है, उनकी सरलता जन-मन में प्रीति उत्पन्न करे, उसमें तो आश्चर्य ही क्या है ?
सरलता स्वाभाविक होती है और कुटिलता में कृत्रिमता होती है। इसलिए स्वभावधर्म को छोड़ कर कृत्रिम (बनावटी) धर्म को कौन ग्रहण करेगा ?
संसार में प्रायः सभी जन छल, पिशुनता, वक्रोक्ति और पर-वञ्चन में तत्पर रहते हैं । ऐसे लोक-समूह में रहते हुए भी शुद्ध स्वर्ण के समान निर्मल एवं निर्विकार करने वाला तो कोई धन्य पुरुष ही होगा।
जितने भी गणधर होते हैं, वे सभी श्रुत-समुद्र के पारगामी होते हैं, तथापि वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए तीर्थङ्कर भगवान् की वाणी को सरलतापूर्वक सुनते हैं।
__ जो सरलतापूर्वक अपने दोषों की आलोचना करते हैं, वे सभी प्रकार के दुष्कर्मों का क्षय कर देते हैं और जो कुटिलतापूर्वक आलोचना करते हैं, वे अपने छोटे दुष्कर्म को
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