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________________ २८२ - तीर्थङ्कर चरित्र के द्वार को दृढ़ता से बन्द करने वाली अर्गला और विश्वास रूपी वृक्ष के लिए दावानल के समान है । विद्वानों के लिए यह त्याग करने योग्य है। - भविष्य में होने वाले मल्लिनाथ तीर्थङ्कर, पूर्व-भव की सूक्ष्म माया के शल्य के कारण स्त्री-भाव को प्राप्त होंगे। इसलिए जगत् का द्रोह करने वाली माया रूपी नागिन को सरलता रूपी औषधी से जीत लेना चाहिए । इससे आनन्द की प्राप्ति होती है । सरलता, मुक्तिपुरी का सरल एवं सीधा मार्ग है । इसके अतिरिक्त तप, दान आदि लक्षण वाला जो मार्ग है, वह तो अवशेष मार्ग है-सरलता रूपी धोरी-मार्ग के साथ रहने वाले हैं। जो सरलता का सेवन करते हैं, वे लोक में भी प्रीति-पात्र बनते हैं और जो मायाचारी कुटिल पुरुष हैं, उनसे तो सभी लोग डरते हैं। जिनकी मनोवृत्ति सरल है, उन महात्माओं को भव-वास में रहते हुए भी स्वतः के अनुभव में आवे--ऐसा अकृत्रिम मुक्तिसुख मिलता है ? जिनके मन में कुटिलता रूपी काँटा (खीला) खटक कर क्लेश किया करता है और जो दूसरों को हानि पहुँचाने में ही तत्पर रहते हैं, उन वञ्चक पुरुषों को सुख-शांति कहाँ से मिलेगी ? सभी विद्याएँ प्राप्त करने पर और सभी कलाओं की उपलब्धि होने पर भी, बालक जैसी सरलता तो किसी विरले भाग्यशाली पुरुष को ही प्राप्त होती है । अज्ञ होते हुए भी बालकों की सरलता सभी के मन में प्रीति उत्पन्न करती है, तो जिस भव्यात्मा का चित्त सभी शास्त्रों के अर्थ में आसक्त है, उनकी सरलता जन-मन में प्रीति उत्पन्न करे, उसमें तो आश्चर्य ही क्या है ? सरलता स्वाभाविक होती है और कुटिलता में कृत्रिमता होती है। इसलिए स्वभावधर्म को छोड़ कर कृत्रिम (बनावटी) धर्म को कौन ग्रहण करेगा ? संसार में प्रायः सभी जन छल, पिशुनता, वक्रोक्ति और पर-वञ्चन में तत्पर रहते हैं । ऐसे लोक-समूह में रहते हुए भी शुद्ध स्वर्ण के समान निर्मल एवं निर्विकार करने वाला तो कोई धन्य पुरुष ही होगा। जितने भी गणधर होते हैं, वे सभी श्रुत-समुद्र के पारगामी होते हैं, तथापि वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए तीर्थङ्कर भगवान् की वाणी को सरलतापूर्वक सुनते हैं। __ जो सरलतापूर्वक अपने दोषों की आलोचना करते हैं, वे सभी प्रकार के दुष्कर्मों का क्षय कर देते हैं और जो कुटिलतापूर्वक आलोचना करते हैं, वे अपने छोटे दुष्कर्म को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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