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________________ २५० तीर्थंकर चरित्र के लिए आ गई और अन्य देव तथा इन्द्र भी जन्मोत्सव करने आये । मेरु-पर्वत पर देवों ने जन्मोत्सव किया। प्रातःकाल होने पर महाराज कृतवर्मा नरेश ने भी जन्मोत्सव प्रारंभ किया। गर्भकाल में माता, विशेष विमल (निर्मल) हो गई थी, इसलिए पुत्र का नाम 'विमल कुमार' रखा गया । यौवन-वय प्राप्त होने पर राजकुमारियों के साथ विमलकुमार का विवाह हुआ। पन्द्रह लाख वर्ष पर्यन्त कुमार अवस्था में रहने के बाद पिता ने कुमार का राज्याभिषेक कर दिया। तीस लाख वर्ष तक आप राज्य का संचालन करते रहे । इसके बाद आपने वर्षीदान दे कर संसार का त्याग कर दिया और माघ-शुक्ला चतुर्थी के दिन जन्म-नक्षत्र में ही, बेले के तप से, एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। फिर आप ग्रामानुग्राम विचरने लगे। स्वयंभू वासुदेव चरित्र इस जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह क्षेत्र की आनन्दकरी नगरी में 'नन्दीसुमित्र' नाम का राजा राज करता था । वह महाबलवान् और विवेकवान् था। संसार की असारता पर उसके मन में उद्वेग था। राज का संचालन करते हुए भी वह अलिप्त रहता था और सर्वत्यागी बनने का मनोरथ कर रहा था। श्री सुव्रताचार्य मुनिराज का योग मिलते ही वह प्रवजित हो गया और संयम तथा विविध अभिग्रह युक्त तप करता हुआ आयु पूर्ण कर के अनुत्तर विमान में देव हुआ। भरत-क्षेत्र की श्रावस्ति नगरी में धनमित्र नाम का राजा राज करता था। धनमित्र की मित्रता के वश हो कर 'बलि' नाम का एक दूसरा राजा भी श्रावस्ति में ही आ कर धनमित्र के साथ रहने लगा। वे दोनों द्युतकीड़ा में आसक्त हो कर पासा फेंक कर खेलने लगे। वे दोनों इस खेल में इतने लुब्ध रहते कि हिताहित का भी विचार नही करते । वे युद्ध के समान एक दूसरे को हरा कर विजय प्राप्त करने के लिए सम्पत्ति को दाँव पर लगाने लगे होते-होते धनमित्र ने अपना सारा राज्य दांव पर लगा दिया और हार गया। वह कंगाल के समान राज्य छोड़ कर चला गया और विक्षिप्त के समान भटकने लगा। भटकते हुए उसे निग्रंथ अनगार श्री सुदर्शन मुनि के दर्शन हुए । धर्मदेशना सुन कर वह दीक्षित हो गया और संयम तथा तप की आराधना करता हुआ विचरने लगा। वह चारित्र की आराधना तो करता था, किन्तु 'बलि' राजा के द्वारा हुए अपने अपमान को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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