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तीर्थकर चरित्र
हुआ और अपना परिचय देते हुए बोला--
--"मैं भविष्यवेत्ता हूँ। भूत, भविष्य और वर्तमान के भाव यथातथ्य बता सकता हूँ। आप मेरे ज्ञान का परिचय पाइए।"
___--'अच्छा, यह बताओ कि अभी निकट भविष्य में क्या कुछ नई घटना घटने वाली है"--राजा ने पूछा।
--"महाराज! आज से सातवें दिन, समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ कर संसार में प्रलय मचा देगा। यह समस्त पृथ्वी जलमय हो जायगी"--ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की।
राजा चकित हो कर अपनी सभा के ज्योतिषियों की ओर देखने लगा । ज्योतिषियों ने भविष्यवेत्ता की हँसी उड़ाते हुए कहा--" महाराज ! यह कोई नया ही भविष्यवेत्ता है। इसके शास्त्र भी नये ही होंगे। किन्तु नभमंडल के ग्रह-नक्षत्रादि तो नये नहीं हो सकते। ज्योतिष-चक्र तो वही है स्वामिन् ! उससे तो ऐसा कोई योग दिखाई नहीं देता । यह कोई विलक्षण महापुरुष है, जो उन्मत्त के समान व्यर्थ बकवाद कर रहा है । यह झूठा है-- महाराज ! इसकी बात कभी सत्य नहीं हो सकती।" ।
ज्योतिषियों की बात सुन कर भविष्यवेत्ता बोला-"महाराज ! आपकी सभा में या तो ये विद्वान् विदूषक (हँसोड़) हैं, या गांवड़े के जंगली पंडित हैं । ऐसे नामधारी पंडितों से आपकी सभा सुशोभित नहीं होती। राजन् ! ये शास्त्र के रहस्य को नहीं जानते, किन्तु किसी प्रकार अपना स्वार्थ साधते रहते हैं। यदि इन्हें मेरे भविष्य-कथन पर विश्वास नहीं हो, तो बात तो सात दिन की ही है । ये सात दिन मुझे आप अटक में रखिये । यदि मेरा भविष्य-कथन असत्य हो जाय, तो आप मुझे कठोरतम दण्ड दीजिए । मैं अपने ज्ञान को प्रत्यक्ष सिद्ध कर के दिखा दूंगा।"
राजा ने उस ब्राह्मण को अपने अंग-रक्षकों के रक्षण में दिया । नगर में इस बात के प्रसरने से जनता में भी हलचल मच गई। इस भविष्यवाणी को व्यर्थ मानने वाले भी आशंकित हो गए। छह दिन व्यतीत होने के बाद सातवें दिन राजा ने उस ब्राह्मण को बुलाया और कहा-- -
___"विप्रवर ! आज का दिन याद है ? क्या आज ही प्रलय होगा? आकाश तो बिलकुल स्वच्छ दिखाई दे रहा है। समुद्र भी अब तक अपनी सीमा में ही होगा। फिर वह प्रलय कहाँ से आएगा ?"
'राजन् ! थोड़ी देर धीरज धरें । मेरी भविष्यवाणी पूरी होने ही वाली है । मैने
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