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________________ भ० अजितनाथजी--मांगलिक अग्नि कहाँ है ? कोई अनहोनी बात नहीं है। महामारी और युद्धादि में बहुत-से मनुष्य एक साथ मरते हैं। मृत्यु तो प्रत्येक संसारी जीव के साथ लगी ही हुई है। यदि संसार में रह कर ही अमर होने का कोई उपाय होता, तो चक्रवर्ती आदि नरेन्द्र और देवेन्द्रादि कभी नहीं मरते । मृत्यु सभी के लिए अनिवार्य है, फिर विक्षिप्त के समान विलाप करना और मरने के लिए तत्पर होना तो मात्र मूर्खता ही है। इसलिए तुम धैर्य धारण करो और अपने स्थान पर जाओ। तुम्हारे स्वामी को सम्हालने के लिए मैं उनके पास जाता हूँ।" माँगलिक अग्नि कहाँ है ? इस प्रकार सभी को समझा कर वह ब्राह्मण आगे बढ़ा और मार्ग में से किसी मरे हुए मनुष्य का शव उठा कर विनिता नगरी में प्रवेश किया। राजभवन के आँगन में जा कर वह ब्राह्मण जोर-जोर से चिल्लाने लगा;-- -" हे चक्रवर्ती महाराज ! हे न्यायावतार ! हे रक्षक-शिरोमणि ! आपके राज्य में मुझ पर महान् अत्याचार हुआ है। आप जैसे महाबाहु राजेश्वर के राज्य में मैं लूट गया हूँ। मेरी रक्षा करो देव ! मैं आपकी शरण में आया हूँ।" ब्राह्मण के ऐसे अश्रुतपूर्व शब्द सुन कर सगर महाराज चितित हुए। उसके दुःख को अपना ही दुःख मानते हुए उन्होंने द्वारपाल को भेज कर ब्राह्मण को बुलाया । ब्राह्मण रुदन करता हुआ राजा के सामने आया। महाराज ने ब्राह्मण से पूछा ; --"तुझे किसने लूटा है ? कौन है तुझे दुःख देने वाला ?" -"पृथ्वीनाथ ! आपके राज्य में सर्वत्र शांति है । कोई किसी को लूटता नहीं है, न चोरियाँ होती है, न छिनाझपटी होती है और न कोई धरोहर दबाता है । अधिकारीगण अपने कर्तव्य का सचाई के साथ पालन करते हैं। आरक्षक भी अपने स्वजनादि के समान प्रजा की रक्षा करते हैं । प्रजा भी सत्य और न्याय युक्त आचरण करती है । अन्याय, अनीति एवं दुराचार का नाम ही नहीं है । न लड़ाई-झगड़े हैं, न वैर-विरोध । सर्वत्र सुखशांति और संतोष व्याप रहा है । कोई दुःखी-दर्दी और दरिद्र नहीं है--आपके राज्य में । किन्तु मुझ गरीब पर ही वज्रपात हुआ है महाराज !" ___ "मैं अवंती देश के अश्वभद्र नगर का रहने वाला अग्निहोत्री ब्राह्मण हूँ। मैं अपने एकमात्र पुत्र और पत्नी को छोड़ कर विशेष अध्ययन के लिए विदेश गया था। मेरा अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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