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तीर्थंकर चरित्र
किया। उस समय इन्द्र का आसन चलायमान हुआ। भरतेश्वर को केवलज्ञान होना जान कर इन्द्र, तत्काल वहाँ आया और मुनि का द्रव्य-लिंग अर्पण किया। सर्वज्ञ भगवान् ने मुनिवेश स्वीकार किया। फिर आरिसा भवन से निकल कर अन्तःपुर के मध्य में होते हुए राज्य-सभा में आये । सभा को प्रतिबोध दे कर दस हजार राजाओं को प्रव्रजित किया और जनपद विहार करने लगे। कुछ कम एक लाख पूर्व तक धर्मोपदेश दे कर भव्य जीवों को मुक्तिमार्ग में लगाते रहे और एक मास तक अनशन कर के मोक्ष प्राप्त हुए।
की असारता एवं अनित्यता का विचार करते हुए वे क्षपक-श्रेणी पर आरूढ़ हो गए। किन्तु जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र में--'शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय से बढ़ते हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त करने और उसके बाद आभरण--अलंकार उतारने और केशलुंचन करने का उल्लेख है । यहाँ हमने सूत्र के उल्लेख का अनुसरण किया है।
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