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तीर्थंकर चरित्र
पर्ययज्ञानी, १२६५० वादिविजय लब्धि वाले, २२९०० अनुत्तर विमान में गये, २०००० साधु सिद्ध हुए, ४०००० साध्वियें सिद्ध हुई ।
भगवान् आदिनाथ स्वामी उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में, सर्वार्थसिद्ध महाविमान से चव कर माता के गर्भ में आये । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ही जन्मे, राज्याभिषेक, दीक्षा और केवलज्ञान ये पाँचों प्रसंग उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ही हुए और अभिजीत नक्षत्र में सिद्ध हुए ।
प्रभु बीस लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रहे । तिरसठ लाख पूर्व तक राज्यासीन रहे । इस प्रकार ८३ लाख पूर्व तक गृहस्थावस्था में रहे । इसके बाद दीक्षा ग्रहण की । एक हजार वर्ष तक छदमस्थावस्था में साधु रहे और एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व तक केवलज्ञानी तीर्थंकर रहे । कुल संयमी - जीवन एक लाख पूर्व का रहा और कुल आयु चौरासी लाख पूर्व थी । जब तीसरे आरे के तीन वर्ष, आठ मास और पन्द्रह दिन शेष रहे, तब सिद्ध गति को प्राप्त हुए ।
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प्रथम तीर्थंकर
भगवान्
ऋषभदेव स्वामी का चरित्र सम्पूर्ण
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