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पंचसंग्रह : १०
४. उच्चगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय, उच्च-नीचगोत्र की सत्ता । यह विकल्प मिथ्यादृष्टि से लेकर देशविरतगुणस्थान पर्यन्त होता है । आगे के गुणस्थानों में नीचगोत्र का उदय नहीं होने से यह विकल्प संभव नहीं है।
५. उच्चगोत्र का वंध, उच्चगोत्र का उदय, उच्च-नीचगोत्र की सत्ता । यह विकल्प मिथ्यादृष्टि से सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान पर्यन्त होता है, आगे के गुणस्थानों में गोत्रकर्म का बंध नहीं होने से संभव नहीं है।
६. उच्चगोत्र का उदय, उच्च-नीचगोत्र की सत्ता । यह विकल्प उपशांतमोहगुणस्थान से लेकर अयोगिकेवलीगुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त होता है।
७. उच्चगोत्र का उदय और उच्चगोत्र की सत्ता । यह विकल्प अयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय में होता है।
उक्त समग्र कथन का दिग्दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
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-
बंध
उदय
सत्त्व
गुणस्थान
नीच
नीच
नीच-उच्च
| १,२
उच्च
नीच-उच्च
नीच
नीच-उच्च
उच्च
नीच-उच्च
१ से १० तक
नीच-उच्च
११, १२, १३ में व १४ के द्विचरम समय तक १४वें का अन्तिम समय
उच्च
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