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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३,१४
दर्शनावरणकर्म की नौ, छह और चार प्रकृतियों का जहाँ तक बंध होता है, वहाँ तक चक्षदर्शनावरण आदि चार या निद्रा के साथ पाँच का उदय और नौ की सत्ता होती है। जिससे छह भंग हो जाते हैं तथा दर्शनावरण कर्म के अबन्धक को उपशांतमोहगुणस्थान में चार या पाँच का उदय एवं नौ की सत्ता होती है। जिससे इन दो विकल्पों को पूर्वोक्त छह में मिलाने से कुल आठ भंग होते हैं । वे इस प्रकार
१. नौ का बंध, चार का उदय और नौ की सत्ता, यह विकल्प निद्रा का उदय न होने की स्थिति में होता है।
२. नौ का बंध, पाँच का उदय और नौ की सत्ता, यह विकल्प निद्रा के उदय में होता है।
यह दोनों विकल्प मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में होते हैं।
३. छह का बंध, चार का उदय और नौ की सत्ता, अथवा ४. छह का बंध, पाँच का उदय और नौ की सत्ता ।
यह दोनों विकल्प तीसरे गुणस्थान से लेकर आठवें गुणस्थान के पहले संख्यातवें भाग पर्यन्त होते हैं।
५. चार का बंध, चार का उदय और नौ की सत्ता, अथवा ६. चार का बंध, पाँच का उदय और नौ की सत्ता ।
यह दो विकल्प उपशमश्रेणि में अपूर्वकरण के दूसरे भाग से लेकर दसवें गुणस्थान के चरम समय पर्यन्त होते हैं तथा उपशांतमोहगुणस्थान में बंध नहीं होने से--
७. चार का उदय, नौ की सत्ता, अथवा ८. पाँच का उदय, नौ की सत्ता, यह दो विकल्प होते हैं।
इस प्रकार आठ विकल्प हुए और क्षीणमोहगुणस्थान के चरम समय में
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