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पंचसंग्रह : १० ६. चार का उदय, चार की सत्ता यह एक विकल्प होता है। यह नौवाँ भंग है।
क्षपकश्रेणि में दर्शनावरणकर्म की चार प्रकृतियों के बंधक को अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान में स्त्यानद्धित्रिक का क्षय होने के बाद और सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में छह की सत्ता और चार का उदय होता है, एवं दर्शनावरणकर्म के अबंधक क्षीणमोही के भी छह की सत्ता और चार का उदय होता है। जिससे यह दो विकल्प होते
१०. चार का बंध, चार का उदय, छह की सत्ता । यह विकल्प स्त्याद्धित्रिक का सत्ता में से क्षय होने के बाद सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान के चरम समय पर्यन्त होता है तथा
११. चार का उदय, छह की सत्ता । यह विकल्प क्षीणमोहगुणस्थान में द्विचरम समय पर्यन्त होता है ।
इस प्रकार ग्रन्थकार के मतानुसार दर्शनावरणकर्म के ग्यारह भंग जानना चाहिये। _ अब एक मतान्तर का उल्लेख करते हैं कि कर्मस्तवकार आदि कितने ही आचार्य क्षपकणि के नौवें गुणस्थान में और द्विचरम समय पर्यन्त बारहवें गुणस्थान में निंद्रा के साथ पाँच का उदय भी मानते हैं। जिससे उनके मतानुसार और भी दो विकल्प इस प्रकार होते हैं
१२. चार का बंध, पांच का उदय, छह की सत्ता । यह विकल्प स्त्याद्धित्रिक का क्षय होने के बाद सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान पर्यन्त होता है।
१३. बंधविच्छेद के बाद पाँच का उदय, छह की सत्ता क्षीणमोहगुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त होती है।
इस तरह उनके मत से तेरह विकल्प होते हैं। उक्त समग्र कथन का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
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