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________________ सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १० दर्शनावरण कर्म के नौ, छह और चार प्रकृतिक ये तीन बंधस्थान होते हैं। इनमें से नौ प्रकृति रूप बंधस्थान में दर्शनावरण कर्म की सभी उत्तर प्रकृतियां हैं और यह पहले मिथ्यादृष्टि एवं दूसरे सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानवर्ती प्रत्येक जीव के बंधता है । स्त्यानद्धित्रिक रहित शेष छह प्रकृति रूप दूसरा बंधस्थान तीसरे सम्यक्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान के पहले भाग पर्यन्त होता है । क्योंकि इन गुणस्थानों में स्त्यानद्धित्रिक का बंध नहीं होता है । स्त्यानद्धित्रिक और निद्राद्विक के बिना शेष चक्षुदर्शनावरण आदि चार प्रकृति रूप तीसरा बंधस्थान अपूर्वकरण गुणस्थान के दूसरे भाग से लेकर सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान पर्यन्त होता है । यहाँ निद्राद्विक का भी बंध नहीं होता है । इस प्रकार दर्शनावरणकर्म के तीन बंधस्थान होते हैं और वे अनुक्रम से दूसरे, आठवें और दसवें गुणस्थान तक बंधते हैं । २७ बंधस्थान की तरह दर्शनावरणकर्म के नौ, छह और चार प्रकृतिक ये तीन सत्तास्थान होते हैं । उनमें से नौ प्रकृतिक सत्तास्थान नौवें अनिवृत्तिबादरगुणस्थान के प्रथम भाग पर्यन्त सत्ता में होता है । यह कथन क्षपकश्रेणि की अपेक्षा जानना चाहिये । क्योंकि उपशमश्रेणि में तो उपशांत मोहगुणस्थान पर्यन्त नौ प्रकृतियों की सत्ता होती है । क्षपकश्रेणि में नौवें गुणस्थान के पहले भाग में स्त्यानद्धत्रिक का क्षय होने के बाद नौवें के दूसरे भाग से लेकर क्षीणमोहगुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त छह प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं । क्षीणमोह के द्विचरम समय में निद्राद्विक का सत्ता में से क्षय होने पर अंतिम समय में चक्षुदर्शनावरण आदि दर्शनावरण कर्म की चार प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं और वे चारों प्रकृतियाँ भी उसी क्षीणमोहगुणस्थान के चरम समय में सत्ता में से क्षय हो जाने से, उसके अनन्तरवतीं गुणस्थानों (सयोगि, अयोगि केवली गुणस्थानों) में दर्शनावरणकर्म सत्ता में नहीं रहता है । इस प्रकार से दर्शनावरणकर्म के तीन बंधस्थान एवं तीन सत्ता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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