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पंचसंग्रह : १० स्थान और उनके स्वामियों को जानना चाहिये। अब इसी कर्म के तीन बंधस्थानों का जघन्य-उत्कृष्ट बंध का काल प्रमाण बतलाते हैं। दर्शनावरणत्रिक का बंधकाल प्रमाण
नवभेए भंगतियं बे छावठिउ छव्विहस्स ठिई।
चउ समयाओ अंतो अंतमुहूत्ताउ नव छक्के ॥११॥ शब्दार्थ-नवभेए-नौ के स्थान के, भंगतियं-तीन भंग, बे-दो, छावठिउ-छियासठ, छविहस्स-छह प्रकार के, ठिई-स्थिति, चउ-चार के, समयाओ-समय से लेकर, अंतो-अन्तर्मुहूर्त, अंतमुहत्ताउ---अन्तर्मुहूर्त से, नव-छक्के-नौ और छह में। __गाथार्थ-नौ के स्थान के अन्तर्मुहूर्त से लेकर अनादि-अनन्त आदि तीन भंग रूप, छह के स्थान का अन्तमुहूर्त से दो छियासठ सागरोपम और चार के स्थान का एक समय से लेकर अन्तमुहूर्त प्रमाण काल होता है।
विशेषार्थ-गाथा में दर्शनावरणकर्म के तीन बंधस्थानों का जघन्य, उत्कष्ट बंधकाल प्रमाण इस प्रकार बताया है
दर्शनावरणकर्म के नौप्रकृतिक बंधस्थान के कालापेक्षा तीन भंग होते हैं-१ अनादि-अनन्त, २. अनादि-सांत और ३. सादि-सांत । इनमें से अभव्य जीवों के कभी भी मिथ्यात्वभाव छोड़ने वाले नहीं होने से अनादि-अनन्त प्रमाण बंधकाल है। जिन भव्यों ने अभी तक मिथ्यात्वभाव नहीं छोड़ा है, किन्तु कालान्तर में मिथ्यात्वभाव को छोड़कर ऊपर के गुणस्थान को प्राप्त करेंगे, उनकी अपेक्षा अनादिसांत बंधकाल है और सम्यक्त्व से गिरकर जो मिथ्यात्व को प्राप्त हुए उनकी अपेक्षा सादि-सान्त बंधकाल है और वह सादि-सांत काल जघन्य अन्तमुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट देशोन अर्धपुद्गलपरावर्तन प्रमाण जानना चाहिये । क्योंकि सम्यत्वव से गिरकर मिथ्यात्व को प्राप्त जीव जघन्य से अन्तमुहूर्त काल और उत्कृष्ट से देशोन अर्ध
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