________________
सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा : का उदय और तिर्यंच, नरकायु की सत्ता यह विकल्प होता है। यह विकल्प मिथ्यादृष्टि और सासादन इन दो गुणस्थानों में संभव है। क्योंकि तिर्यंचायु का बंध आदि के दो गुणस्थानों में ही होता है।
३. मनुष्यायु का बंध, नरकायु का उदय और मनुष्यायु-नरकायु को सत्ता, यह विकल्प तीसरे गुणस्थान में आयु का बंध ही नहीं होने से पहले, दूसरे और चौथे, इन तीन गुणस्थानों में होता है । मनुष्यायु का बंध वहाँ तक ही होता है। इस प्रकार बंधकाल के दो विकल्प हुए।
आयु का बंध संपूर्ण होने के बाद
४. नरकायु का उदय, तिथंच नरकायु की सत्ता, यह विकल्प पहले से चौथे गुणस्थान तक के चार गुणस्थानों में होता है। क्योंकि तिर्यचायु का बंध करने के पश्चात् तीसरे या चौथे गुणस्थान में जाना सम्भव है।
५. नरकायु का उदय, मनुष्यायु-नरकायु की सत्ता यह विकल्प भी आदि के चार गुणस्थानों में होता है ।
इस प्रकार नारकों के बंधकाल के पूर्व एक, बंधकाल के दो और बंधकाल के बाद के दो, इस तरह कुल पाँच विकल्प होते हैं।
देवगति-इसी प्रकार देवों में भी नरकायु के स्थान पर देवायु का प्रक्षेप करके पाँच भंगों पर विचार कर लेना चाहिये। वे इस प्रकार हैं
१. देवायु का उदय, देवायु की सत्ता।
२. तिर्यंचायु का बंध, देवायु का उदय, तिर्यंच-देव आयु को सत्ता ।
३. मनुष्यायु का बंध, देवायु का उदय, मनुष्य-देवायु की सत्ता ।
४. देवायु का उदय, तिर्यंच-देवायु की सत्ता । ५. देवायु का उदय, मनुष्य-देवायु की सत्ता। तिर्यंचगति-सम्बन्धी विकल्प इस प्रकार हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org