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पंचसंग्रह : १० चउसुवि-चारों गतियों में, एक्कस्सुदओ-एक का उदय, पण नव नव पंचपांच, नो, नौ, पांच, इइ- यह, भेया--भेद, विकल्प, भंग।
___ गाथार्थ-आयु का बंध न हुआ हो वहाँ तक एक की तथा बद्धायुष्क के और बध्यमान के दो-दो आयु की सत्ता होती है। चारों गतियों में भुज्यमान एक-एक आयु का ही उदय होता है तथा चारों गति के अनुक्रम से पाँच, नौ, नौ, और पाँच संवेधविकल्प होते हैं।
विशेषार्थ-गाथा में आयुकर्म के संवेधविकल्पों का संकेत करने के लिये कहा है कि चारों गति में जब तक परभव की आयु का बंध न हुआ हो, तब तक जीवों के उदय-प्राप्त भुज्यमान एक ही आयु सत्ता में होती है। किन्तु जिन्होंने परभव की आयु का बंध कर लिया हो अथवा जो बंध कर रहे हैं उनके अपनी भुज्यमान आयु एवं परभव की आयु इस तरह दो आयु सत्ता में होती हैं।
चारों गतियों में से जो जीव जिस-जिस गति में हो, उस गति के अनुरूप एक ही आयु का उदय होता है, किसी भी समय एक साथ दो आयु का उदय नहीं होता है । परभव की जिस आयु का बंध हुआ हो, उस गति में जाने पर उस आयु का उदय होता है।
तिर्यंच और मनुष्य सर्वत्र-चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं । अतएव उनके चारों आयु का तथा देव और नारक मनुष्य तिर्यंच गति में ही उत्पन्न होते हैं, इसलिये उनको दो आयु का ही बंध होता है। उक्त कारण से नरक गति में आयु के पाँच, तिर्यंच गति में नौ, मनुष्य गति में नौ और देवगति में पाँच संवेधविकल्प होते हैं । जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
नरकगति-नारकों के पारभविक आयु का बंध होने से पूर्व--
१. नरकायु का उदय और नरकायु की सत्ता यह विकल्प होता है और यह विकल्प नारकों के आदि के चार गुणस्थान होने से प्रथम चार गुणस्थानों में संभव है।
२. परभवायु का बंध करता हो तब तिर्यंचायु का बंध, नरकायु
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