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पंचसंग्रह :१०
१. पारभविक आयु का बंध होने के पहले तिर्यंचों के तिर्यंचायु का उदय, तिर्यंचायु की सत्ता, यह विकल्प होता है और यह विकल्प आदि के पाँच गुणस्थानों में संभव है। क्योंकि तिर्यंचों के आदि के पाँच गुणस्थान होते हैं, शेष गुणस्थान नहीं होते हैं।
२. परभवायु के बंधकाल में नरकायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय, नरक-तिर्यंचायु की सत्ता । यह भंग मिथ्यादृष्टि के ही होता है । क्योंकि नरकायु का बंध, पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में ही होता है, अथवा
३. तिर्यंचायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय और तिर्यंच-तिर्यंच आयु की सत्ता, यह विकल्व मिथ्यादृष्टि और सासादन इन दो गुणस्थानों में होता है। इसका कारण यह है कि तिर्यंचायु का बंध आदि के दो गुणस्थानों में हो सकता है।
४. मनुष्यायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय और मनुष्य-तिर्यचायु की सत्ता । यह विकल्प भी आदि के दो गुणस्थानों में हो सकता है। क्योंकि अविरतसम्यग्दृष्टि या देशविरत तिर्यंच के देवायु का ही बंध होता है।
५. देवायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय और देवायुतियंचायु की सत्ता, यह विकल्प मिथ्यादृष्टि, सासादन, अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत के होता है। ____ यह दो से पाँच तक के चार विकल्प परभव की आयु का बंध होता हो तब बंधकाल में होते हैं । सम्यक्मिथ्यादृष्टि (मिश्र) गुणस्थान में आयु का बंध हो न होने से, उसके आयु के बंधकाल का कोई विकल्प नहीं होता है।
६. परभव की आयु का बंध हो जाने के बाद तिर्यंचायु का उदय, नरक-तिर्यचायु की सत्ता, यह विकल्प पहले से पाँचवें गुणस्थान पर्यन्त होता है। इसका कारण यह है कि नरकायु का बंध होने के बाद सम्यक्त्व आदि की प्राप्ति संभव है।
७. तिर्यंचायु का उदय तिर्यंच-तिर्यंचायु की सत्ता ।
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