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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४ बारहवें गुणस्थान में और अघाति चार कर्मों में से किसी का उदय रहते एक का बंध ग्यारहवें से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक होता है। ___इस प्रकार उदय का बंध के साथ संवेध का अभिप्राय जानना चाहिये । अब विभक्ति का व्यत्यय करके गाथा के पूर्वार्ध द्वारा बंध का उदय के साथ संवेध का दिग्दर्शन कराते हैं
छह, सात अथवा आठ के बंध में मोहनीय का उदय होता है। क्योंकि आठ का बंध (मिश्र के अलावा) पहले मिथ्यात्व से सातवें अप्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त, सात का बंध अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान तक और छह का बंध सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में होता है और मोहनीय का उदय दसवें सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान पर्यन्त अवश्य होता है, अतएव छह, सात अथवा आठ के बंध में मोहनीय का उदय होता है तथा आठ, सात, छह या एक के बंध में शेष कर्मों में से किसी का भी उदय होता है। उनमें से ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय का उदय क्षीणमोह पर्यन्त एवं वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र का उदय अयोगिकेवलीगुणस्थान पर्यन्त होता है तथा एक का बंध उपशांतमोहादि में होता है, जिससे शेष कर्मों का उदय सात, आठ, छह और एक के बंध में भी होता है। __ इस प्रकार बंध का उदय के साथ संवेध का कथन जानना चाहिये।
अब गाथा के उत्तरार्ध द्वारा बंध के साथ सत्ता के संवेध का विचार करते हैं
आठ कर्मों में से किसी भी कर्म की सत्ता होने पर आठ, सात, छह या एक प्रकृतिक इन चार में से किसी भी बंधस्थान का बंध होता है । तात्पर्य यह है कि किसी भी एक कर्म की सत्ता होने पर कौनसा बंधस्थान होता है इसका जब विचार किया जाये तब कहा जा सकता है कि एक-एक कर्म की सत्ता होने पर एक, छह, सात और आठ प्रकृतिक यह चारों प्रकार का बंध संभव है। जिसका स्पष्टीकरण इस
प्रक
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