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________________ पंचसंग्रह : १० शब्दार्थ-बंधइ-बंध होता है, छ सत्त अट्ठ-छह, सात, आठ कर्म, य-और, मोहुदए-मोहनीय का उदय होने पर, सेसयाण-शेष का, एक्क-एक के, च-और, पत्तेयं—प्रत्येक की, संतेहि-सत्ता होने पर, बंधइ-बंध होता है, एगं छ सत्तट्ट-एक, छह, सात, आठ । गाथार्थ-मोहनीय का उदय होने पर छह, सात और आठ कर्म का बंध होता है और शेष कर्मों का उदय होने पर एक, छह, सात और आठ का भी बंध होता है । एक के बंध में मोह के बिना शेष (सात) का उदय होता है। ज्ञानावरणादि आठ कर्मों में से किसी भी कर्म (प्रत्येक) की सत्ता होने पर एक, छह, सात और आठ में से किसी भी बंधस्थान का बंध होता है। विशेषार्थ-मोहनीयकर्म का जब उदय हो तब यथायोग्य गुणस्थानानुसार छह, सात अथवा आठ इन तीन बंधस्थानों में से किसी भी एक का बंध होता है। जिसका आशय यह है कि मोहनीय का उदय दसवें गुणस्थान पर्यन्त होता है। उसमें से तीसरे गुणस्थान के बिना आदि के सात गुणस्थान पर्यन्त आयु के बंधकाल में आठ का और आयु का बंध न हो तब तथा तीसरे, आठवें, नौवें गुणस्थान में आयु का बंध नहीं होने से सात का बंध होता है और दसवें गुणस्थान में आयु एवं मोहनीय के बिना छह का बंध होता है। मोहनीय के बिना शेष सात कर्मों में से किसी भी कर्म का उदय हो तब एक का बंध होता है तथा गाथोक्त 'य-च' कार द्वारा ग्रहण किये गए छह, सात और आठ में से किसी का भी बंध होता है। ज्ञानावरणादि तीन घातिकर्मों का उदय बारहवें गुणस्थान पर्यन्त और चार अघातिकर्मों का उदय चौदहवें गुणस्थान पर्यन्त होता है जिससे चारों बंधस्थान घटित हो सकते हैं। उनमें से मोह के बिना सात कर्मों में से किसी का भी उदय होने पर छह, सात और आठ का बंध पूर्वकथनानुसार जानना चाहिये। तीन घातिकर्मों का उदय होने पर एक का बंध ग्यारहवें और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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