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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १५३,१५४,१५५
३४१ इस प्रकार से चतुर्गति में बंध सम्बन्धी विशेषता जानना चाहिये। अब शेष मार्गणाओं सम्बन्धी विशेषता का प्रतिपादन करते हैं। शेष मार्गणाओं में बंधयोग्य प्रकृतियाँ
किण्हाइतिगे अस्संजमे य वेउविजुगे न आहारं । बंधइ न उरलमीसे नरयतिगं छटुममराउ ॥१५३।। कम्मजोगि अणाहारगो य सहिया दुगाउ णेयाओ। सगवण्णा तेवट्ठी बंधति आहारमुभएसु॥१५४॥ तेउलेसाईया बंधंति न निरयविगलसुहमतिगं।
सेगिदिथावरायवतिरियतिगुज्जोय नव बारं ॥१५५।। शब्दार्थ-किण्हाइतिगे-कृष्णादि तीन लेश्याओं में, अस्संजमे-असयम में, य-और, वेउविजुगे-वैक्रिय द्विक मागंणा में, न- नहीं, आहारआहारकद्विक, बंधइ-बंधती हैं, न-नहीं. उरलमीसे-औदारिकमिश्र मे, नरयतिग-नरकत्रिक, छ?---छठी, अमराउं- देवायु को। ____ कम्मजोगि-कार्मणकाययोग में, अणाहारगो .. अनाहा र क मार्गणा में, य-और. सहिया-सहित, दुगाउ-दो आयु, णेयाओ- इनका नहीं सगवण्णा–सत्तावन, तेवट्ठी--सठ, बंधति-बांधते हैं, आहारमुभएK-दोनों आहारकशरीर मार्गणा में ।
तेउलेसाईया-तेजोलेश्यातीत, बंधतिः-बांधते हैं, न-नहीं, निरयविगलसुहमतिर्ग-नरकत्रिक, विकलत्रिक, सूक्ष्मत्रिक, सेगिविथावरायव- एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप सहित, तिरितिगुज्जोय-तिर्यंचत्रिक, उद्योत, नव-नो, बार-बारह । ___ गाथार्थ-कृष्णादि तीन लेश्याओं, असंयम, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र मार्गणा में वर्तमान आहारकद्विक का बंध नहीं करते हैं। औदारिकमिश्रयोग में वर्तमान आहारकद्विक, नरकत्रिक और छठी देवायु इन छह का बंध नहीं करते हैं।
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