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________________ ( २८ ) १३३ गाथा ६४ १२६-१३० मिथ्यात्व गुणस्थान में नाम कर्म की बंध एवं विच्छेद योग्य प्रकृतियां गाथा ६५ १३०-१३१ सासादन, मिश्र, अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में नाम कर्म की बंधयोग्य प्रकृतियाँ १३१ गाथा ६६, ६७, ६८ १३२-१३५ मिश्र और अविरतसम्यक दृष्टि गुणस्थानों में नाम कर्म की बंधयोग्य प्रकृतियों के नाम व बंध कारण देशविरत, प्रमत्तसंयत गुणस्थान में नाम कर्म की बंधयोग्य प्रकृतियाँ अप्रमत्त संयत गुणस्थान में बंधयोग्य नाम कर्म की प्रकृतियाँ १३४ अपूर्वकरण से सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान पर्यन्त बंधयोग्य नाम कर्म की प्रकृतियाँ गाथा ६६, ७०, ७१, ७२ १३५–१३८ विधि-निषेधमुखेन नामकर्म की प्रकृतियों के सहचारी उदय की संभवासंभवता का विचार १३७ गाथा ७३ १३८-१३६ नामकर्म के उदयस्थान १३६ गाथा ७४ १३६-१४० चारों गतियों में नामकर्म के उदयस्थान १४० गाथा ७५, ७६, ७७ १४०-१४७ मिथ्यात्व गुणस्थान में नामकर्म के उदयस्थान १४२ सासादन गुणस्थान में नामकर्म के उदयस्थान १४२ अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में नामकर्म के उदयस्थान सयोगिकेवली गुणस्थान में नामकर्म के उदयस्थान देशविरत गुणस्थान में नामकर्म के उदयस्थान १४४ १४४ १४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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