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________________ ३०२ पंचसंग्रह : १० आदि के इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस प्रकृतिक इन चार उदयस्थानों में पाच-पांच सत्तास्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं- बानवै, अठासी, छियासी, अस्सी, अठहत्तर प्रकृतिक । इनमें से अठहत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान तेज और वायुकायिक जीवों के होता है तथा तेज और वायु में से निकलकर जहां उत्पन्न होते हैं, वहां वे जब तक मनुष्यद्वि का बंध नहीं करते हैं तब तक होता है । शेष सत्ताईस प्रकृतिक आदि पांच उदयस्थानों में अठहत्तर प्रकृतिक के सिवाय चार-चार सत्तास्थान होते हैं । सत्ताईस प्रकृतिक आदि पांच उदयस्थानों में वर्तमान तिर्यंच अवश्य मनुष्यद्विक को बांधने वाले होने से उनको अठहत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान संभव नहीं है । इसी प्रकार पच्चीस, छब्बीस, उनतीस और तीस प्रकृतियों के बंधक के लिये भी उदयस्थान और सत्तास्थान जानना चाहिये, लेकिन मात्र मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों का बंध करने वाले तियंचों को अपने योग्य सभी उदयस्थानों में अठहत्तर प्रकृतिक के सिवाय शेष चार-चार सत्तास्थान होते हैं । देव या नरक गति योग्य अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक पर्याप्त असंज्ञी को तीस, इकत्तीस प्रकृतिक ये दो उदयस्थान होते हैं और अपर्याप्त संज्ञी तिर्यंच को आठ उदयस्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं- इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक । इनमें से इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक ये पांच उदयस्थान पूर्वबद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि को जानना चाहिये । प्रत्येक उदयस्थान में बानव और अठासी प्रकृतिक ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं । पच्चीस और सत्ताईस प्रकृतियों का उदय वैक्रिय तिर्यंच को होता है, वहाँ भी बानव और अठासी प्रकृतिक ये दो दो सत्तास्थान होते हैं । तीस और इकत्तीस प्रकृतियों का उदय समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि को होता है और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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