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पंचसंग्रह : १०
प्रमत्तसंयत गुणस्थान- यह तथा इससे आगे के सभी गुणस्थान संयत मनुष्य को ही होते हैं । इस गुणस्थान सम्बन्धी बंध, उदय और सत्तास्थानों का विवरण इस प्रकार है
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इस गुणस्थान में अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक ये दो बंधस्थान होते हैं । जो देशविरत की तरह समझना चाहिये तथा पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस प्रकृतिक ये पांच उदयस्थान होते हैं। ये सभी उदयस्थान वैक्रियसंयत और आहारकसंयत को होते हैं तथा अंतिम तीस प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ संयत को भी होता है।
वैक्रियसंयत और आहारकसंयत के पच्चीस और सत्ताईस प्रकृतियों के उदय में एक-एक भंग होता है । अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान के दो-दो और तीस प्रकृतिक उदयस्थान का एकएक भंग होता है । यानि वैक्रियसंयत के सात और आहारकसंयत के सात कुल चौदह भंग होते हैं ।
तीस प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ संयत को भी होता है और उसके देशविरति की तरह एक सौ चवालीस भंग होते हैं ।
तेरानवे, नवासी, बानव और अठासी प्रकृतिक इस तरह चार सत्तास्थान होते हैं । जिनका विचार देशविरत गुणस्थान के समान कर लेना चाहिये |
अब इनके संवेध का कथन करते हैं
देवगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक प्रमत्तसंयत को उपर्युक्त पांचों उदयस्थानों में बानव और अठासी प्रकृतिक इस प्रकार दो-दो सत्तास्थान होते हैं । मात्र आहारकसंयत के प्रत्येक उदयस्थान में एक बानव प्रकृतिक सत्तास्थान ही होता है । क्योंकि आहारक की सत्ता वाला ही आहारकशरीर की विकुर्वणा कर सकता है। वैक्रियसंयत को दोनों सत्तास्थान संभव हैं ।
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