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सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६
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उदयस्थान होते हैं । इन प्रत्येक उदयस्थान में भी बानव एवं अठासी प्रकृतिक इस प्रकार दो-दो सत्तास्थान होते हैं ।
तीर्थकरनाम युक्त देवगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों का बंध देशविरत मनुष्यों के ही होता है । उसमें पहले मनुष्य को जो और जिस प्रकार से पांच उदयस्थान कहे हैं, वे उसी प्रकार से पांच उदयस्थान होते हैं । प्रत्येक उदयस्थान में तेरानवें और नवासी प्रकृतिक इस प्रकार दो-दो सत्तास्थान होते हैं ।
इस प्रकार देशविरत गुणस्थान में पच्चीस से तीस तक के पांच उदयस्थानों में चार-चार सत्तास्थान और इकत्तीस प्रकृतियों के उदय में दो सत्तास्थान, इस प्रकार कुल वाईस सत्तास्थान होते हैं ।
इस प्रकार से देशविरतगुणस्थान के बंधादि स्थान और उनका संवेध जानना चाहिये । सुगमता से समझने के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार है
देशविरत गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों के संबंध का प्रारूप
बंघस्थान
२८ प्र.
२६ प्र.
योग २
उदयस्थान
२५ प्र.
२७,,
२८ "
२६ "
३०
३१
11
२६,,
२७,
११
"
२८ १
२६ "
३०
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सतास्थान
२,८८ प्र
६२, ८८
९२,८८ 33 ६२,८८
२,८८ ६२, ८८
६३, ८६ ६३, ८६
६३
८६
६३, ८६
६३, ८६
२२
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