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________________ २८० पचसंग्रह : १० विकल्प के जो भंग होते हैं, उनको यहाँ ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह गुणस्थान समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त होने के बाद ही होता है । इसी प्रकार मनुष्य को भी तीस प्रकृतियों के ग्यारह सौ बावन भंग होते हैं । कुल मिलाकर तीस प्रकृतिक उदयस्थान के तेईस सौ चार भंग होते हैं। ___ इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान के तिर्यच पंचेन्द्रियों संबन्धी ग्यारह सौ बावन भंग होते हैं । यह उदयस्थान मनुष्यों को नहीं होता है। तीनों उदयस्थानों के कुल मिलाकर चौंतीस सौ पैंसठ भंग होते हैं। सत्तास्थान बानवै और अठासी प्रकृतिक इस प्रकार दो होते हैं ।। आहारकचतुष्क की सत्ता वाले को बानवै प्रकृतिक और उसकी सत्ता बिना को अठासी प्रकृतिक सत्तास्थान चारों गति के जीवों के होता है। ___ अब इनके संवेध का निरूपण करते हैं-अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक सम्यगमिथ्यादृष्टि को तीस और इकत्तीस प्रकृति रूप दो उदयस्थान होते हैं। इन दोनों उदयस्थानों में वर्तमान तिथंच और तीस प्रकृतियों के उदय में वर्तमान मनुष्य देवगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों का बंध करते हैं और उस समय इन दोनों उदयस्थानों में बानवै और अठासी प्रकृतिक इस तरह दो सत्तास्थान होते हैं। __ मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों के बंधक देव और नारक को उनतीस प्रकृतिक एक ही उदयस्थान होता है। उनतीस प्रकृतियों के उदय में वर्तमान देव और नारक मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों १ दिगम्बर साहित्य में बान और नब्ब प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान बतलाये हैं-'तीर्थकर प्रकृति की सत्तावाला जीव मिश्र गुणस्थान को प्राप्त नहीं होता है । इसलिये उसके तेरानव और इक्यानवै प्रकृतिक सत्तास्थान संभव नहीं हैं । शेष बान और नब्बे प्रकृतिक दो सत्तास्थान उसके होते हैं । -दि० पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गाथा ४०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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