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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६ का बंध करते हैं, उस समय बानवै और अठासी प्रकृतिक में से कोई भी सत्तास्थान होता है।
इस तरह तीनों में के प्रत्येक उदयस्थान में दो-दो सत्तास्थान होने से सामान्यतः छह सत्तास्थान होते हैं।
इस प्रकार से मिश्रगुणस्थान संबन्धी बंध, उदय और सत्तास्थान एवं उनका संवेध जानना चाहिये । सुगम बोध के लिये उक्त कथन का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
मिश्र गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों के संवेध का प्रारूप
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बंधस्थान
उदयस्थान
सत्तास्थान
२८ प्र.
६२, ८८ प्र.
m
२६ प्र.
६२, ८८ ,,
योग २
अविरतसम्यग्दष्टिगुणस्थान-इस गुणस्थान में वर्तमान जीव को अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक ये तीन बंधस्थान होते हैं। इनमें से अविरतसम्यग्दृष्टि तिर्यचों और मनुष्यों के देवगतियोग्य बंध करने पर अट्ठाईस प्रकृतिक बंधस्थान होता है। उसके स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यशःकीति-अयशःकीति के भेद से आठ भंग होते हैं।
इस गुणस्थान वाले अन्य किसी भी गतियोग्य बंध नहीं करते हैं। अतएव यहां नरकगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों का बंध नहीं होता है।
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