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पंचसंग्रह : १० एवं उनका संवेध जानना चाहिये । संक्षेप में उक्त वर्णन का दर्शक प्रारूप इस प्रकार हैसासादन गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों के संवेध का प्रारूप
बंधस्थान
उदयस्थान
सत्तास्थान
२८ प्र.
३० प्र.
६२, ८८ प्र.
८८ ॥
२६ प्र.
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३० प्र.
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योग ३
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मिश्रगुणस्थान-अब सम्यमिथ्यादृष्टि गुणस्थान के बंध-उदयसत्तास्थानों और उनके संवेध का विचार करते हैं।
इस गुणस्थान की यह विशेषता है कि यह गुणस्थान गर्भज तिर्यच और गर्भज मनुष्य, देव और नारकों को पर्याप्तावस्था में ही होता है। इस गुणस्थान में देव और नारक मात्र मनुष्यगतियोग्य और
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