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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६ २७७ उक्त समग्र कथन का संक्षिप्त सारांश यह है कि मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तो चौदह जीवभेदों में होता है और वहां चारों गति योग्य बंध होता है । परन्तु सासादन में नरकगति के सिवाय तीन गति योग्य बंध होता है । सासादन गुणस्थान पर्याप्तनाम के उदय वाले बादर पृथ्वी, जल और प्रत्येक वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्दिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, देव, मनुष्य और तियंच पंचेन्द्रिय को शरीर-पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले एवं देव, नारक, गर्भज तिर्यंच और गर्भज मतुष्य को पर्याप्तावस्था में होता है । अपर्याप्तावस्था में वर्तमान उपर्युक्त समस्त जीव मनुष्यगति योग्य उनतीस एवं तियंचगति योग्य उनतीस तथा तीस प्रकृतिक इस प्रकार दो बंधस्थानों का बंध करते हैं और पर्याप्तावस्था में वर्तमान देव, नारक मनुष्यगति योग्य उनतीस एवं तिर्यचगति योग्य उनतीस, तीस प्रकृतिक ये दो बंधस्थान बांधते हैं तथा गर्भज तिर्यंच और गर्भज मनुष्य देवगतियोग्य अट्ठाईस, मनुष्यगतियोग्य उनतीस तथा तिर्यंचगतियोग्य उनतीस, तीस प्रकृतिक बंधस्थानों को बांधते हैं । इस गुणस्थान में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय या असंज्ञी पंचेन्द्रिय योग्य बंध नहीं होता है तथा शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले पृथ्वी, जल और प्रत्येक वनस्पति को इक्कीस, चौबीस, विकलेन्द्रिय, असंज्ञी-संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य को इक्कीस छब्बीस, और देव के इक्कीस, पच्चीस प्रकृतिक ये दो-दो उदयस्थान होते हैं और पर्याप्तावस्था में देव को उनतीस, तीस, नारक को उनतीस, तिर्यंच को तीस, इकत्तीस और मनुष्य को तीस प्रकृतिक इस प्रकार उदयस्थान होते हैं। नारकों के अपर्याप्तावस्था में सासादन सम्यक्त्व नहीं होता है । अपने-अपने उदयस्थान में रहते वे जीव ऊपर कहे अनुसार बंधस्थान बांधते हैं। सासादनगुणस्थान में बानवै और अठासी प्रकृतिक यही दो सत्तास्थान होते हैं । अपने-अपने उदय में रहते और अपने-अपने योग्य बंधस्थान बांधते उनको बानवै या अठासी में से कोई भी सत्तास्थान होती है। इस प्रकार से सासादनगुणस्थानवर्ती बंध, उदय और सत्तास्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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