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पचसंग्रह : १० तियंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यगति योग्य उनतीस प्रकृतियों का बंध करने पर सातों उदयस्थान होते हैं । अर्थात् उन सातों उदयस्थानों में से जिसको जो-जो उदयस्थान होता है, उस-उस उदयस्थानवर्तो वे मनुष्यगतियोग्य या तिर्यंचगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों का बंध करते हैं। उसमें अपने-अपने उदयस्थानवर्ती एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, देव और नारकों के सासादनगुणस्थान में एक अठासी प्रकृतिक सत्तास्थान ही होता है और मात्र तीस प्रकृतिक उदयस्थान में वर्तमान मनुष्य को उपशम श्रेणि से गिरने पर यदि उसने आहारकचतुष्क का बंध किया हो तो सासादनगुणस्थान में बानवै प्रकृतिक सत्तास्थान होता है।
तीस प्रकृतियों के बंधक के लिये भी इसी प्रकार जानना चाहिये।
सभी उदयस्थानों में सब मिलाकर सामान्य से अट्ठाईस प्रकृतिक बंधस्थान में दो, तिथंचगतियोग्य उनतीस प्रकृतिक बंधस्थान में दो, मनुष्ययोग्य उनतीस प्रकृतिक बंधस्थान में दो और तिर्यंचगतियोग्य तीस प्रकृतिक बंधस्थान में दो, इस प्रकार आठ सत्तास्थान होते हैं। १. सासादन गुणस्थान में बानवे प्रकृतिक सत्तास्थान आहारकचतुष्क
बांधकर उपशम श्रेणि से गिरकर सासादन में आने वाले को होता है । इसीलिये मनुष्य को ही तीस प्रकृतियों के उदय में बानवै प्रकृतिक सत्तास्थान बताया है । यहाँ प्रश्न यह है कि उपशम श्रेणि से गिरकर सासादन में आने वाला वहीं कालधर्म प्राप्त कर सासादन भाव लेकर देवगति में जाये तो देव संबन्धी इक्कीस, पच्चीस, प्रकृतियों के उदय में बानवे प्रकृतिक सत्तास्थान क्यों नहीं बताया है ? क्योंकि वैमानिक देव का आयु बांधकर उपशमश्रेणि पर आरूढ़ होकर गिरने वाला सासादन गुणस्थान में कालधर्म को प्राप्त कर उस गुणस्थान को लेकर वैमानिक देवों में जा सकता है तो वहीं मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर इक्कीस, पच्चीस प्रकृतियों के उदय में बानवै प्रकृतिक सत्तास्थान भी संभव है । परन्तु उसको नहीं बताया है। विज्ञजन स्पष्ट करने की रुपा करें।
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