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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६
२५६ . उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान के सत्रह सौ इक्यासी भंग विभिन्न जीवों की अपेक्षा इस प्रकार जानना चाहिये-विकलेन्द्रियों के बारह, तिर्यंचपंचेन्द्रिय के ग्यारह सौ बावन, वैक्रिय तिर्यंचपंचेन्द्रिय के सोलह, प्राकृत मनुष्य के पाँच सौ छियत्तर, वैक्रिय मनुष्य के आठ, देवों के सोलह और नारकों का एक ।
तीस प्रकृतिक उदयस्थान के उनतीस सौ चौदह भंग हैं । विभिन्न जीवों की अपेक्षा वे इस प्रकार हैं-विकलेन्द्रियों के अठारह, तियंचपंचेन्द्रिय के सत्रह सौ अट्ठाईस, वक्रिय तिर्यंच के आठ, मनुष्य के ग्यारह सौ बावन और देवों के आठ।
इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान के ग्यारह सौ चौंसठ भंग इस प्रकार जानना चाहिये-विकलेन्द्रिय के बारह और तिर्यंचपंचेन्द्रिय के ग्यारह सौ बावन । जो कुल मिलाकर ग्यारह सौ चौंसठ हुए।
इस प्रकार मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में अपने नौ उदयस्थानों के सब मिलाकर सात हजार सात सौ तिहत्तर (७७७३) भंग होते हैं।
इस प्रकार से मिथ्यादृष्टिगुणस्थान के उदयस्थान एवं उनके भंगों . को जानना चाहिये । यद्यपि नामकर्म के उदयस्थान बारह हैं और उन सबके कुल भंग बीस आदि प्रकृति रूप उदयस्थान के क्रम से १, ४२, ११, ३३, ६००, ३३, १२०२, १७८५, २६१७, ११६५, १, १ हैं और जिनका कुल जोड़ सात हजार सात सौ इक्यानवै है। किन्तु मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में आहारकसंयत, वैक्रियसंयत और केवली सम्बन्धी भंग सम्भव नहीं होने से केवली के आठ, आहारकसंयत के सात और उद्योत सहित वैक्रिय मनुष्य के तीन भंग कुल अठारह भंगों को कम कर देने पर सात हजार सात सौ तिहत्तर भंग प्राप्त होते हैं । जिनका ऊपर उल्लेख किया चुका है। ___ अब मिथ्यादृष्टिगुणस्थान के सत्तास्थान बतलाते हैं। नामकर्म के कुल सत्तास्थान बारह हैं। जो इन प्रकृति समुदाय रूप हैं-तेरानवै,
बानवे, नवासी, अठासी, छियासी, अस्सी, उन्यासी, अठहत्तर, छियJain Education International For Private & Personal Use Only
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