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पंचसंग्रह : १०
और तीस प्रकृतिक इन तीन उदयस्थानों के एक-एक कुल तीन और तीर्थंकर, अतीर्थंकर के दस उदयस्थानों में से सामान्य मनुष्य में नहीं गिने गये आठ भंग कुल अठारह भंगों को कम करने पर सात हजार. सात सौ तेहत्तर (७७७३) उदयभंग होते हैं । जो इस प्रकार हैं
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मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान के इकतालीस भंग होते हैं- एकेन्द्रिय के पाँच, विकलेन्द्रिय के नौ, तियंच पंचेन्द्रिय के नौ, मनुष्य के नौ, देव के आठ, नारक का एक । इनका कुल योग इकतालीस होता है ।
चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान के ग्यारह भंग हैं और यह उदयस्थान एकेन्द्रियों के ही होता है । अन्य किन्हीं भी जीवों के चौबीस प्रकृतियों का उदय नहीं होता है ।
पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान के बत्तीस भंग इस प्रकार होते हैंएकेन्द्रिय के सात, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय के आठ, वैक्रिय मनुष्य के आठ, देवों के आठ और नारकों का एक । इन सबका जोड़ बत्तीस है ।
छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान के छह सौ भंग इस प्रकार हैं- एकेन्द्रिय के तेरह, विकलेन्द्रिय के नौ, तियंच पंचेन्द्रिय के दो सौ नवासी, मनुष्य के दो सौ नवासी । कुल छह सौ हुए ।
सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान के इकत्तीस भंग होते हैं । जिनका विवरण इस प्रकार है -- एकेन्द्रिय के छह, वैक्रिय तिर्थंच पंचेन्द्रिय के आठ, वैक्रिय मनुष्य के आठ, देवों के आठ और नारकों का एक 1
अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान के ग्यारह सौ निन्यानवै भंग होते हैं । जो विभिन्न जीवों की अपेक्षा इस प्रकार हैं- विकलेन्द्रियों के छह, तियंच पंचेन्द्रियों के पाँच सौ छियत्तर, वैक्रिय तियंच के सोलह, मनुष्य के पाँच सौ छियत्तर, वैक्रिय मनुष्य के आठ, देवों के सोलह और नारकों का एक । कुल मिलाकर इनका जोड़ ग्यारह सौ निन्यानव होता है ।
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