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पंचसंग्रह : १०
दृष्टिगुणस्थान में छह बंधस्थानों के उपर्युक्त ( १३६४५ - १६= १३ε२६) तेरह हजार नौ सौ छब्बीस भंग होते हैं ।
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मिथ्यादृष्टिगुणस्थान सम्बन्धी नामकर्म के उक्त बंधस्थानों के कथन का सारांश यह है कि यद्यपि नामकर्म के तेईस, पच्चीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकत्तीस और एक प्रकृतिक ये आठ बंधस्थान होते हैं। इनमें से कोई तिर्यंचगति, कोई मनुष्यगति, कोई देवगति और कोई नरकगति प्रयोग्य बंधस्थान हैं और इस कारण उनके अनेक अवान्तर भेद भी हो जाते हैं । लेकिन यहाँ उन बंधस्थानों का गुणस्थानों में प्राप्ति की अपेक्षा विचार किया जा रहा है । अतएव अंतिम दो को छोड़कर शेष तेईस से लेकर तीस प्रकृतिक तक छह बंधस्थान मिथ्यात्व गुणस्थान में पाये जाते हैं । इनमें भी तीर्थंकरनाम सहित देवगतिप्रायोग्य उनतीस प्रकृतिक, तीथंकरनाम सहित मनुष्यगतिप्रायोग्य तीस प्रकृतिक एवं आहारकद्विक सहित देवगतिप्रायोग्य तीस प्रकृतिक बंधस्थान के भंगों को ग्रहण नहीं करना चाहिये । इनके अतिरिक्त सामान्य उनतीस व तीस प्रकृतिक बंधस्थान ग्रहण करना चाहिये ।
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इन बंधस्थानों में तेईस प्रकृतिक के बंधक मनुष्य तिर्यंच हैं एवं अपर्याप्त एकेन्द्रिय प्रायोग्य है । पच्चीस प्रकृतिक के बंधक तिर्यंच, मनुष्य व देव हैं तथा एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियत्रिक, पंचेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्य प्रायोग्य है । छब्बीस प्रकृतिक के बंधक तिर्यंच, मनुष्य व देव हैं तथा पर्याप्त एकेन्द्रिय प्रायोग्य बंधस्थान है। अट्ठाईस प्रकृतिक के बंधक पंचेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्य हैं व यह देव और नरकगति प्रायोग्य
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दिगम्बर कर्म साहित्य में भी इसी प्रकार नामकर्म के आठ बंधस्थान माने हैं | देखिये गो० कर्मकांड गा० ५२१ ।
२ दिगम्बर कर्म साहित्य में मिथ्यात्व गुणस्थान सम्बन्धी नामकर्म के इसी प्रकार से तेईस से लेकर तीस प्रकृतिक तक छह बंधस्थान बताये हैं । देखें पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गा० ४०२ ।
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