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________________ सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२८ २४६ संयत गुणस्थान में आठ चौबीसी हैं । उनको उस गुणस्थान संबन्धी स्थाप्य अंक सोलह से गुणा करने पर एक सौ अट्ठाईस होते हैं । अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में आठ चौबीसी हैं। इसलिये उनके साथ उसके स्थाप्य बत्तीस अंक का गुणा करने पर दो सौ छप्पन होते हैं । उक्त कथन का सारांश यह हुआ कि गुणस्थानों के कम करने योग्य भंगों की स्थापना इस प्रकार है - २८८, ६४, ३२, १२८, २५६ । इन सबका जोड़ कुल मिलाकर सात सौ अड़सठ होता है । जो पूर्वोक्त उदयभंग की संख्या में से कम करना चाहिये। ऐसा करने पर शेष उदयभंगों की संख्या अर्थात् योगगुणित भंगों की पूर्वोक्त कुल संख्या चौदह हजार एक सौ उनहत्तर (१४१६६) प्राप्त होती है । अब कम करने योग्य पदों को प्राप्त करने के उपाय का कथन करते हैं चवीसाइगुणेज्जा पयाणि अहिगिच्च मिच्छ छन्नउइ । धुवगेहिं एगी किच्चा सेसाणं तओ सोहे ॥ १२८ ॥ शब्दार्थ - चवीसाइगुणेज्जा- चौबीस से गुणा करना चाहिये, पयाणिअहिगिच्च पदों की अपेक्षा, मिच्छ - - मिध्यात्व में, छन्नउइ - छियानवे, सेसाणं - शेष गुणस्थान के, धुवगेहिं - ध्रुवपदों के साथ, एगीfकच्चाजोड़कर, तओ - तत्पश्चात्, सोहे-कम करना चाहिये । गाथार्थ - मिथ्यात्व गुणस्थान में पदों की अपेक्षा छियानवे का चौबीस से गुणा करना चाहिये और शेष गुणस्थानों के स्थाप्य अंकों का ध्रुवपदों के साथ गुणा करके और तत्पश्चात् जोड़कर पद की कुल संख्या में से कम करना चाहिये । विशेषार्थ - गाथा में शोध्य पद - कम करने योग्य पदों को प्राप्त करने की विधि बताई है - पदापेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में छियानवें को चौबीस से गुणा करना चाहिये और छियानवें के साथ गुणा करने का कारण यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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