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पंचसग्रह : १० जो उक्त तीन योग में से किसी योग में नहीं होते हैं। इसलिये छियानवै स्थापित करने का संकेत किया है। ___अब जिस गुणस्थान में जितने स्थाप्य कहे हैं, उनको उस गुणस्थान संबन्धी चौबीसियों के साथ गुणा करना चाहिये। जिससे कम करने योग्य भंगों की संख्या प्राप्त होती है । जैसे कि सासादनगुणस्थान में आठ स्थापित करने का संकेत किया है और उस गुणस्थान में चार चौबीसी होती हैं, अतएव आठ को चार से गुणा करने पर बत्तीस होते हैं, जो कम करने योग्य भंग हैं। मिथ्यात्व गुणस्थान में औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र और कार्मणकाययोग इन प्रत्येक काययोग में चारचार चौबीसियां होती ही नहीं हैं, अतएव चार चौबीसियों को चार से गुणा करने पर प्रत्येक योग के कम करने योग्य भंग प्राप्त होते हैं। जो छियानवै होते हैं।
इस प्रकार से स्थापना करने के योग्य अंकों को स्थापित करने के बाद असंभवी संख्या प्राप्त करने की प्रक्रिया यह है
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में स्थापना योग्य छियानवै भंग बताये हैं, वे छियानवै वैक्रियमिश्र, औदारिकमिश्र और कार्मण इन तीनों योगों में नहीं होते हैं । अतएव उनका तीनों योगों से गुणा करने पर (९६ X ३=२८८) दो सौ अठासी होते हैं।
गाथा में शेष अप्रमत्तसंयत आदि गुणस्थानों में आठ आदि अंक स्थापित करना बताया है । उनको उस-उस गुणस्थान की चौबीसियों से गुणा करना चाहिये । अर्थात् जिस गुणस्थान की जितनी चौबीसियां हैं, उनके साथ उस गुणस्थान के स्थाप्य अंकों का गुणा करना चाहिये। जैसे कि अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में आठ चौबीसी हैं । अतः उनके साथ उस गुणस्थान के स्थाप्य आठ का गुणा करने पर कम करने योग्य चौंसठ प्राप्त होते हैं।
इसी प्रकार सासादन गुणस्थान में चार चौबीसी हैं। उनसे उस गुणस्थान के स्थाप्य आठ को गुणा करने पर बत्तीस होते हैं । प्रमत्त
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