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पंचसंग्रह : १० के चौबीस पद और एक के उदय के पाँच पद कुल उनतीस पद नौवें, दसवें गुणस्थान के होते हैं। वहाँ नौ योग होने से नौ से गुणा करने पर दो सौ इकसठ होते हैं। जिन्हें पूर्व की राशि में मिलाने पर एक लाख एक हजार दो सौ त्रेपन (१०१२५३) होते हैं।
इस राशि में से असम्भव पदों को कम करना चाहिये। अतएव अब उन असम्भव पदों का संकेत करते हैं कि मिथ्यादृष्टि को अनन्तानुबंधि के उदय बिना के सात के उदय में एक चौबीसी के ध्रवपद सात, आठ के उदय के दो चौबीसी के ध्रवपद सोलह और नौ के उदय के एक चौबीसी के ध्रवपद नौ, कुल बत्तीस ध्रवपद वैक्रियमिश्रकाययोग में, बत्तीस औदारिकमिश्रकाययोग में और बत्तीस कार्मणकाययोग में कुल छियानवै ध्रुवपद नहीं होते हैं । उनको चौबीस से गुणा करने पर तेईस सौ चार होते हैं। इतने मिथ्यादृष्टि के असंभवी पद हैं।
वैक्रिय मिश्रयोग में वर्तमान सासादनगुणस्थान वाले को नपुंसकवेद का उदय नहीं होता है। इसका स्पष्टीकरण पूर्व में किया जा चुका है। नपुसकवेद के आठ भंग होते हैं। सासादनगणस्थान में बत्तीस ध्रवपद होने से आठ को बत्तीस से गुणा करने पर दो सौ छप्पन होते हैं । इतने पद सासादनगुणस्थान में सम्भव नहीं हैं।
कार्मणकाययोग और वैक्रियमिश्रकाययोग में वर्तमान अविरतसम्यग्दृष्टि के स्त्रीवेद का उदय नहीं होता है । अविरतसम्यग्दृष्टि के साठ ध्र वपद होते हैं। स्त्रीवेद सम्बन्धी एक चौबीसी में आठ भंग होते हैं। उनको साठ से गुणा करने पर चार सौ अस्सी पद कार्मणकाययोग में और चार सौ अस्सी पद वैक्रियमिश्रयोग में और दोनों मिलकर नौ सौ साठ पद नहीं होते हैं तथा औदारिकमिश्रयोग में वर्तमान अविरतसम्यग्दृष्टि के एक पुरुषवेद का ही उदय होता है, स्त्रीवेद और नपुसकवेद का उदय नहीं होता है। स्त्री-नपुसकवेद के साथ सोलह भंग होते हैं। इसलिये सोलह को साठ से गुणा करने पर
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