SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ पंचसंग्रह : १० गाथार्थ-लेश्या के भेद से मोहनीय कर्म के उदयभंग तीन कम त्रेपन सौ (५२६७) और उदयपद अड़तीस हजार दो सौ सैंतीस (३८२३७) होते हैं। विशेषार्थ--गाथा में लेश्याभेद से मोहनीय कर्म के उदयभंगों और उदयपदों की समस्त संख्या बतलाई हैं। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रेकार है मिथ्यादृष्टिगुणस्थान से अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान पर्यन्त प्रत्येक गुणस्थान में कृष्णादि छह-छह लेश्यायें तथा देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत इन तीन गुणस्थानों में तेज, पद्म और शुक्ल ये तीनतीन शुभ लेश्यायें होती हैं । क्योंकि कृष्णादि अशुभ लेश्याओं के होने पर देशविरतादि गुणों की प्राप्ति नहीं होती है तथा अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादरसंपराय और सूक्ष्मसंपराय इन तीन गुणस्थानों में मात्र एक शुक्ललेश्या ही होती है । अतएव-- जिस-जिस गुणस्थान में जितनी लेश्यायें होती हैं उनके साथ उसउस गुणस्थान में उदयभंगों और उदयपदों का गुणाकार करने पर लेश्या के भेद से होने वाले उदयभंगों और उदयपदों की संख्या प्राप्त होती है। जैसे कि मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में उदयभंग की संख्या एक सौ बानवै है। क्योंकि यहां आठ चौबीसी हैं और उनको चौबीस से गुणा करने पर एक सौ बानवं गुणनफल होता है तथा इस गुणस्थान में लेश्या छह हैं। इसलिये एक सौ बानव को छह से गुणा करने पर (१६२४६=११५२) ग्यारह सौ बावन होते हैं । जो मिथ्यात्वगुणस्थान में लेश्या द्वारा होने वाले उदयभंगों की संख्या होती है। इसी प्रकार अन्य गुणस्थानों के उदयभंगों एवं उदयपदों की संख्या भी जान लेना चाहिये। जिसको जानने की विधि यह है मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में आठ चौबीसी हैं। सासादन में चार, मिश्र में चर और अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में आठ चौबीसी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy