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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११७
हैं । अतः उस संख्या को और मिलायें तो पचासी सौ (८५०७ ) होते हैं ।
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सात
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गुणस्थान के भेद से कुल पदों की संख्या उपर्युक्तानुसार होती है । सामान्य पद की संख्या में गुणस्थानपरक होने वाला भेद नहीं गिना है । जैसे कि प्रमत्तसंयत गुणस्थान में चवालीस और अप्रमत्तसंयत के चवालीस । यद्यपि गुणस्थान के भेद से भिन्न होते हैं, परन्तु जब सामान्य उदयपद कहे जाते हैं तब दोनों में उदयपदों की समान संख्या होने से भेद नहीं माना जाता है । परन्तु गुणस्थान के भेद से तो संख्या अलग-अलग है । अतः यहाँ अलग-अलग संख्या बताई है । गिनने की रीति पूर्ववत् जानना चाहिये तथा नौवें गुणस्थान के पदों को भी यहाँ ग्रहण करना चाहिये ।
इस प्रकार से गुणस्थानापेक्षा प्रत्येक गुणस्थान के उदयपदों की संख्या जानना चाहिये। अब गुणस्थानों में योगादि द्वारा होने वाली पद संख्या का निरूपण प्रारंभ करते हैं । जिसकी प्रतिज्ञा रूप गाथा इस प्रकार है
एवं
जोगुवओगालसाईभेयओ
बहूभेया । जा जस्स जमि उ गुणे संखा सा तंमि गुणगारो ॥ ११७ ॥ शब्दार्थ - एवं इसी प्रकार, जोगुवओगालेसाईभेयओ - योग, उपयोग, श्या आदि के भेद से, बहूभेया - बहुत से भेद, जा—जो, जस्स – जिसकी, जंमि - जिसमें, उ-- और, गुणे - गुणस्थान में, संखा - संख्या, सा- वह, तंमि-- उसमें, गुणगारो - गुणाकार करना चाहिये ।
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गाथार्थ - इसी प्रकार योग, उपयोग और लेश्यादि, के भेद से मोहनीय कर्म के भंग और पदों के बहुत से भेद होते हैं । जिस गुणस्थान में जिसकी (योगादि की ) जो संख्या हो उस संख्या के साथ गुणस्थान के भंगों और पदसंख्या को गुणा करने पर जो लब्ध हो उतनी मोहनीय कर्म के पदों की संख्या जानना चाहिये । विशेषार्थ -- पूर्वोक्त गाथानुसार उदयभंगों और उदयपदों के
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