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पंचसंग्रह : १०
गुणस्थान के उतने-उतने ध्रुव पद होते हैं। जैसे कि मिथ्यात्व-गुणस्थान में अड़सठ ध्रवपद हैं। वे इस प्रकार जानना चाहिए कि दस के उदय में एक चौबीसी होती है । जिससे एक का दस के साथ गुणा करने पर दस हुए। इसी प्रकार नौ के उदय में तीन चौबीसी होती हैं । अतएव तीन का नौ से गुणा करने पर सत्ताईस, आठ के उदय में तीन चौबीसी होती है, इसलिये तीन को आठ से गुणा करने पर चौबीस, सात के उदय में एक चौबीसी होती है, इसलिये एक को सात से गुणा करने पर सात और इन सबका जोड़ करने पर (१०+ २७-२४+७=६८) अड़सठ ध्रुवपद होते हैं।
इसी तरह सासादन में बत्तीस, मिश्र में बत्तीस, अविरत-सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में साठ, देशविरत में बावन, प्रमत्तसंयत गुणस्थान में चवालीस, अप्रमत्त में भी चवालीस और अपूर्वकरण गुणस्थान में बीस ध्रुवपद होते हैं। ___इस प्रकार मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक के कुल मिलाकर तीन सौ बावन ध्रवपद होते हैं और उनको चौबीस से गुणा करने पर चौरासी सौ अड़तालीस (८४४८) पद होते हैं। उनमें पूर्व में कहे अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान के अट्ठाईस और सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान का एक इस तरह उनतीस उदयपदों को मिलाने पर कुल पद संख्या तेईस न्यून पचासी सौ अर्थात् चौरासी सौ सतहत्तर (८४७७) होती है।
अथवा बंधस्थान के भेद से उदयस्थान का भेद मानने पर पांच के बंध में चौबीस पद, चार के बंध में चार, तीन के बंध में तीन, दो के बंध में दो, एक के बंध में एक और अबंध में सूक्ष्मसंपराय संबन्धी एक, ये सब मिलाकर पैंतीस होते हैं । इनको पूर्वोक्त राशि में जोड़ने पर चौरासी सौ तेरासी (८४८३) होते हैं । अथवा मतान्तर से चार के बंध में भी दो के उदय के भंग बारह और उनके पद चौबीस होते
१.. वपद-वानि जिनके साथ बीबीस का गुणा करना हो ।
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