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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १११,११२,११३ २२३ ..दस के उदय की एक चौबीसी होती है जिससे उसे दस से गुणा करने पर दस, नौ के उदय में छह चौबीसी होती हैं, अतः नौ को छह से गुणा करने पर चउवन, आठ के उदय में ग्यारह चौबीसी होती हैं इसलिये आठ को ग्यारह से गुणा करने पर अठासी, सात के उदय में दस चौबीसी होती हैं, अतएव सात को दस से गुणा करने पर सत्तर, छह के उदय में सात चौबीसी होती हैं, इसलिये छह को सात से गुणा करने पर बयालीस, पांच के उदय में चार चौबीसी होती हैं, इसलिये पांच को चार से गुणा करने पर बीस और चार के उदय में एक चौबीसी होती है, अतः चार को एक से गुणा कर करने पर चार हुए। इनकी स्थापना इस प्रकार होगी १०, ५४, ८८, ७०, ४२, २०, ४ । इन सबका जोड़ दो सौ अठासी होता है। अब इनको चौबीस से गुणा करने पर उनहत्तर सौ बारह (६६१२) होते हैं। उनमें नौवें गुणस्थान के जो दो के उदय में भंग बारह और पद चौबीस तथा वेद का उदय न रहने पर एक के उदय में चार भंग हैं, और उसमें पद भी चार ही होते हैं। इस प्रकार कुल अट्ठाईस पद होते हैं। इनको पूर्व की संख्या में मिलाने पर कुल उनहत्तर सौ चालीस पद होते हैं। यहां दसवें गुणस्थान में एक के उदय का जो एक भंग होता है, वह एक के उदय में होने वाले चार भंग में समाविष्ट है अथवा बंधस्थान के भेद से उदयस्थान का भेद मानें तो पाँच के बंध, दो के उदय में चौबीस पद, चार के बंध, एक उदय में चार पद, तीन के बंध एक के उदय में तीन पद, दो के बंध एक के उदय में दो पद, एक के बंध, एक के उदय में एक पद और बंधविच्छेद होने के बाद दसवें गुणस्थान में एक के उदय का एक पद ये सब मिलकर पैंतीस पद होते हैं। उनको पूर्व की संख्या (६६१२) में मिलाने पर उनहत्तर सौ सैंतालीस पद होते हैं। अथवा मतान्तर से चार के बंध, दो के उदय में बारह भंग होते For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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