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________________ २२२ पंचसंग्रह : १० 1 एक, नौ के उदय की छह में से तीन मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में, एक सासादन में एक मिश्र और एक अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में होती हैं । आठ के उदय की ग्यारह में से तीन मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में, दो सासादन में दो मिश्र में, तीन अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में और एक देशविरत गुणस्थान में होती हैं । सात के उदय की दस में से मिथ्यादृष्टि, सासादन और मिश्रदृष्टि गुणस्थान में एक एक, अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तीन, देशविरत गुणस्थान में तीन और प्रमत्ताप्रमत्त गुणस्थान में एक होती है। छह के उदय में सात में की एक अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में, तीन देशविरत, तीन प्रमत्त - अप्रमत्त मैं, अपूर्वकरण सम्बन्धी छह प्रकृतिक आदि उदयस्थान प्रमत्त - अप्रमत्त गुणस्थानों के उदयस्थान से भिन्न नहीं है । मात्र गुणस्थान के भेद से भिन्न हैं । परन्तु यहां गुणस्थान के भेद से भिन्न चौबीसी की विवक्षा नहीं करने से अपूर्वकरणगुणस्थान की चौबीसी अलग से नहीं गिनी है । पांच के उदय में चार में की एक देशविरत और तीन प्रमत्तअप्रमत्तसंयत गुणस्थान में होती है । चार के उदय की एक और वह प्रमत्त- अप्रमत्त संयत गुणस्थान में होती है । इसका अर्थ यह हुआ कि भिन्न-भिन्न गुणस्थानों में दस से चार तक के उदय की इस प्रकार चौबीसी होती हैं-१, ६, ११, १०, ७, ४, १ और इनका जोड़ करने पर चालीस चौबीसियां होती हैं । इनकी पदसंख्या प्राप्त करने का उपाय इस प्रकार है - जिस-जिस उदयस्थान की जितनी - जितनी चौबीसियां होती हैं, उतनी उतनी चौबीसियों को उस उस उदयस्थान के साथ गुणा करके उन सबका जोड़ किया जाये और फिर चौबीस से गुणा करना और उसके बाद उसमें नौवें गुणस्थान के पदों को मिलाया जाये तो कुल पद संख्या होती है । जैसे १ प्रमत्त - अप्रमत्त गुणस्थानों के स्वरूप का भेद नहीं होने से उन दोनों गुणस्थानों के सभी उदयस्थान एक सरीखे होने से एक स्वरूप वाने माने हैं । जिससे उन दोनों की चौबीसी अलग-अलग नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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