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पंचसंग्रह : १० दोनों की अपेक्षा गुणस्थानों से संवेध भंग इस प्रकार हैं___ 'चत्तारि जा पमत्तो' अर्थात् पहले मिथ्यादृष्टिगुणस्थान से लेकर छठे प्रमत्तसंयतगुणस्थान तक कालभेद से अनेक जीवों की अपेक्षा वेदनीयकर्म के चार भंग होते हैं। जो इस प्रकार हैं-(१) असाता का बंध, असाता का उदय, साता-असाता की सत्ता, (२) असाता का बंध, साता का उदय, साता-असाता की सत्ता, (३) साता का बंध, साता का उदय, साता-असाता दोनों की सत्ता, (४) साता का बंध, असाता का उदय, साता-असाता दोनों की सत्ता। किसी को किसी प्रकृति का बंध होता है और किसी को किसी का होता है। इसी प्रकार किसी को किसी प्रकृति का उदय होता है और किसी को किसी का होता है। जिससे भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा कालभेद से उपर्युक्त भंग बनते हैं।
अप्रमत्तसंयतगुणस्थाय से लेकर सयोगिकेवलीगुणस्थान पर्यन्त साता के बंध वाले दो भंग होते हैं। क्योंकि असातावेदनीय का बंध तो छठे गुणस्थान तक ही होता है, जिससे सातवें गुणस्थान से असाता के बंध वाले भंग नहीं होते हैं। वे दो भंग इस प्रकार हैं-(१) साता का बंध, साता का उदय, साता-असाता की सत्ता। (२) साता का बंध, असाता का उदय, साता-असाता की सत्ता।
बंधविच्छेद होने के बाद शैलेश-अयोगिकेवली गुणस्थान में चार विकल्प होते हैं। उनमें से दो इस प्रकार हैं-(१) साता का उदय, साता-असाता की सत्ता, (२) असाता का उदय, साता-असाता की सत्ता । ये दो विकल्प अयोगिकेवली गुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त होते हैं।
अयोगिकेवलीगुणस्थान में उसके पहले समय से जिसका उदय हो, वह उसके अंतिम समय तक रहता है। बीच में उदय बदलता नहीं है। किसी आत्मा को यदि प्रथम समय से लेकर असाता का उदय हो तो चरम समय पर्यन्त असाता का ही उदय रहता है और किसी आत्मा को यदि साता का उदय हो तो चरम समय पर्यन्त साता का
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