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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०६,१०७,१०८ २१३ उदय रहता है। अयोगिगुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त सत्ता तो दोनों की होती है। चरम समय में जिसका उदय हो उसी की ही सत्ता रहती है । यदि साता का उदय हो तो चरम समय में साता की और यदि असाता का उदय हो तो चरम समय में असाता की सत्ता होती है। जिसका उदय होता है उसकी सत्ता रहती है और जिसका उदय न हो उसकी सत्ता का द्विचरम समय में नाश होता है। जिससे अयोगिगुणस्थान के चरम समय में कोई भी एक साता या असाता की सत्ता रहते दो भंग होते हैं-(१) असाता का उदय, असाता की सत्ता, यह विकल्प जिसके प्रथम समय से असाता का उदय हो उसके सम्भव है और (२) साता का उदय और साता की सत्ता यह भंग प्रथम समय से ही जिसको साता का उदय हो उसके सम्भव है। चरम समय में जिसका उदय होता है, उसके सिवाय अन्य प्रकृति का द्विचरम समय में सत्ता में से विच्छेद होता है । जिससे चरम समय में एक ही सत्ता में रहता है । तेरहवें गुणस्थान तक साता-असाता परावर्तमान होने से उसका उदय बदलता रहता है। एक जीव को भी किसी एक का उदय कायम नहीं रहता है। ___ इस प्रकार से वेदनीयकर्म के संवेध भंगों को जानना चाहिये। अब गुणस्थानों में आयुकर्म के बंध, उदय और सत्तास्थानों के संवेध का निरूपण करते हैं । गुणस्थानों में आयुकर्म के संवेध भंग अट्ठछलाहियवीसा सोलह वीसं च बारस छ बोसु। दो चउसु तीसु एक्कं मिच्छाइसु आउए भंगा ॥१०॥ नरतिरिउदए नारयबंधविहूणा उ सासणि छन्वीसा। बंधसमऊण सोलस मीसे चउ बंध जुय सम्मे ॥१०७॥ देसविरयम्मि बारस तिरिमणुभंगा छबंधपरिहीणा। मणुभंगतिबंधूणा दुसु सेसा उभयसेढीसु ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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