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________________ २१० पंचसंग्रह : १० विशेषार्थ-इन तीन गाथाओं में दर्शनावरणकर्म के संवेध का विचार किया है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है मिथ्यादृष्टि और सासादन इन पहले और दूसरे गुणस्थान में दर्शनावरणकर्म के नौ के बंध से उपलक्षित अर्थात् नौ के बंध वाले दो-दो भंग होते हैं-'नवबंधुवलपिखया उ को भंगा।' वे इस प्रकार जानना चाहिये-(१) नौ प्रकृतियों का बंध, चार का उदय और नौ प्रकृतियों की सत्ता । यह भंग जब निद्रा का उदय न हो तब होता है और (२) नौ का बंध, पाँच का उदय, नौ की सत्ता, यह भंग निद्रा का उदय हो तब होता है। मिश्रदृष्टि से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम भाग पर्यन्त छह के बंध वाले दो-दो भंग होते हैं। जो इस प्रकार हैं कि (१) छह का बंध, चार का उदय और नौ की सत्ता, (२) छह का बंध, पांच का उदय और नौ की सत्ता। इन दोनों भंगों में से पहला निद्रा के अनुदयकाल में और दूसरा निद्रा के उदयकाल में होता है। इन गुणस्थानों में स्त्यानद्धित्रिक का बंध नहीं होने से शेष छह प्रकृतियों का बंध बताया है । तथा अपूर्वकरण के संख्यातवें भाग में निद्रा और प्रचला का बंधविच्छेद होने के बाद संख्यातवें भाग से लेकर उपशमश्रेणि में सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान पर्यन्त चार का बंध और नौ प्रकृतियों की सत्ता रहते दो भंग होते हैं । वे इस प्रकार हैं-(१) चार प्रकृतियों का बंध, चार का उदय और नौ की सत्ता, (२) चार का बंध, पांच का उदय और नौ की सत्ता। ये दोनों भंग अनुक्रम से निद्रा के अनुदय और उदयकाल में होते हैं। ___ बंधविच्छेद होने के बाद उपशान्तमोहगुणस्थान में नौ प्रकृतियों की सत्ता होते दो भंग होते हैं । वे इस प्रकार हैं-(१) चार का उदय, नौ की सत्ता, (२) पांच का उदय, नौ की सत्ता । उपशमश्रेणि में निद्रा का उदय हो सकता है, जिससे निद्रा के उदय वाला भंग भी संभव है। यहाँ अति मंद निद्रा का उदय होता है । तथा-... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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