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________________ सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०२, १०३, १०४ चउबंधे नवसंते दोणि अपुव्वाउ सुहुमरागो जा । अब्बंधे णवसंते उवसंते हृति दो भंगा ॥ १०३ ॥ २०६ चउबंधे छस्संते बायरसुहुमाणमेगुक्खवयाणं । छसु चउसु व संतेसु दोण्णि अबंधंमि खीणस्स ॥ १०४ ॥ शब्दार्थ - मिच्छासासायणेसु - मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में, नवबंधुवलक्खिया - नौ के बंध से उपलक्षित-नो के बंधकाल, उ-और, दो-दो, भंगा-भंग, मीसाओ — मिश्र गुणस्थान में, य-ओर, नियट्टीअपूर्वकरण, जा - तक, छब्बंधेण - छह के बंध वाले, दो-दो - दो-दो, उ-और । www चउबंधे - चार के बंध में, नवसंते नौ की सत्ता में, दोण्णि - दो भंग, अपुष्वाउ - अपूर्वकरण गुणस्थान से, सुहुमरागो— सूक्ष्मसंपराय, जा— तक, अब्बंधे बंध का अभाव होने पर, नवसंते-नो की सत्ता के, उवसंत- -उपशान्तमोहगुणस्थान में, हुति - होते हैं, दो मंगा — दो भंग । → चउबंधे - चार के बंध में, छस्संते - छह की सत्ता में, बायरसुहुमाणंअनिवृत्तिबादरसं पराय और सूक्ष्म संपरायगुणस्थान में एगुक्खवयाणं - - एक क्षपकश्रेणि में, छसु - छह, चउसु — चार में, व - अथवा, संतेसु–सत्ता रहने पर, दोणि- दो, अबंधंमि -- बंध नहीं होने पर, खोणस्स — क्षीणमोही को । - गाथार्थ - मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में नौ के बंध वाले दो भंग होते हैं और मिश्र से अपूर्वकरण पर्यन्त छह के बंध वाले दो-दो भंग होते हैं । अपूर्वकरण से सूक्ष्मसंपराय पर्यन्त चार का बंध और नौ की सत्ता होने पर दो-दो भंग होते हैं । बंध का अभाव होने पर उपशान्तमोहगुणस्थान में नौ की सत्ता होने पर दो भंग होते हैं । चार क्षपक बादर और सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में चार का बंध, का उदय और छह की सत्ता का एक भंग होता है । बंधाभाव में छह अथवा चार की सत्ता होने पर क्षीणमोही के दो भंग होते हैं ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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