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पंचसंग्रह : १० अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतियों के उदय रूप चार उदयस्थानों में भी अठत्तर प्रकृतिक के सिवाय शेष चार-चार सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि अट्ठाईस आदि प्रकृतियों का उदय पर्याप्त नामकर्म के उदय वाले विकलेन्द्रिय तिर्यंचपंचेन्द्रिय और मनुष्यों के होता है । मात्र इकत्तीस प्रकृतियों का उदय पर्याप्त विकलेन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रिय को होता है। क्योंकि इकत्तीस प्रकृतियों का उदय उद्योतनाम युक्त है और उद्योत का उदय तिर्यंचों में होता है। वे अट्ठाईस आदि सभी प्रकृतियों के उदय वाले जीव अवश्य मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी की सत्ता वाले होते हैं।
इस प्रकार तेईस प्रकृतियों के बंधक जीवों के नौ उदयस्थानाश्रयी चालीस सत्तास्थान होते हैं।
जिस प्रकार से तेईस प्रकृतियों के बंधक के उदयस्थानों और सत्तास्थानों का कथन किया है, उसी प्रकार पच्चीस और छब्बीस प्रकृतियों के बंधकों के लिये भी समझ लेना चाहिये।
ये दोनों-पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान पर्याप्त एकेन्द्रिययोग्य बंध करने पर बंधते हैं और उनके बंधक तिर्यच, मनुष्य और ईशान स्वर्ग तक देव हैं तथा पच्चीस प्रकृतियों का बंधस्थान अपर्याप्त विकलेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य योग्य बंध करने पर भी बंधता है। उसके बंधक मनुष्य और तिर्यंच हैं। उपर्यक्त जीव अपने-अपने सभी उदयों में पच्चीस और छब्बीस प्रकृतियों का बंध करते हैं। उस समय तेईस प्रकृतियों के बंध में जो और जिस प्रकार से पाँच सत्तास्थानों का कथन किया है, वही पाँच सत्तास्थान होते हैं। मात्र पर्याप्त एकेन्द्रिययोग्य पच्चीस और छब्बीस प्रकृतियों का बंध करते देवों के अपने इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस,. उनतीस और तीस प्रकृतिक इन छहों उदयस्थानों में बानवै और अठासी प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं। देव, अपर्याप्त विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय या अपर्याप्त मनुष्यगति योग्य पच्चीस प्रकृतियों का बंध करते ही नहीं हैं। क्योंकि वे अपर्याप्त विकलेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं
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