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________________ १६३ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६,१०० पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में भी पूर्वोक्त पांचों स्थान होते हैं। उनमें पच्चीस प्रकृतियों के उदय में अठत्तर का सत्तास्थान वैक्रिय शरीरी के सिवाय अन्य वायुकाय तेजस्काय जीवों के होता है, उनके अतिरिक्त पृथ्वीकायादि को नहीं होता है । क्योंकि तेज और वायुकाय जीवों के अलावा अन्य समस्त पर्याप्त जीव मनुष्यगति और मनुष्यानपूर्वी को अवश्य बांधते हैं। जिससे अठत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान अन्यत्र संभावित नहीं है। छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में भी पांच सत्तास्थान होते हैं। यहां भी अठत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान अवैक्रिय वायु और तेजस्काय जीवों के होता है (पृथ्वी, अप् और वनस्पति में नहीं होता है।) अथवा तेज और वायु में से मनुष्यद्विक की उद्वलना कर पर्याप्तअपर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी-संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच में आये हुए को होता है। क्योंकि वे सभी जब तक मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी को नहीं बांधते तब तक उनको अठत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान होता है, उसके बाद नहीं होता। - सत्ताईस प्रकृति रूप उदयस्थान में अठत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान के सिवाय चार सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि सत्ताईस प्रकृतियों का उदय तेज और वायुकाय के जीवों को छोड़कर पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय और वैक्रिय तिर्यंच, मनुष्यों को होता है । उनको अवश्य मनुष्यद्विक का बंध सम्भव होने से अठत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान घटित नहीं होता है। ___ तेज और वायुकाय के जीवों में सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान न होने का कारण यह है कि छब्बीस प्रकृतियों के उदयवाले एकेन्द्रिय के आतप या उद्योत के उदय में सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। किन्तु तेज और वायुकायिक जीवों के उद्योत या आतप का उदय होता ही नहीं है। जिससे तेज और वायुकाय के जीवों में सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान संभव न होने से उसका निषेध किया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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