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सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६६, १००
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है और उसके बंधक पर्याप्त अपर्याप्त एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तियंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य हैं ।
अपर्याप्त और पर्याप्त एकेन्द्रियादि सभी तिर्यंच और मनुष्य तेईस प्रकृतियों के बंधक हो सकने से अपर्याप्त और पर्याप्त अवस्था में मनुष्य और तिर्यंचों के सम्भव सभी उदयस्थान तेईस प्रकृतियों का बंध करने पर सम्भव हैं । वे उदयस्थान नौ हैं, जो इस प्रकार प्रकृतिसंख्या वाले हैं–२१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१ प्रकृतिक । अब इन उदयस्थानों के होने का विस्तृत विवेचन करते हैं
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उपर्युक्त इक्कीस प्रकृतिक आदि नौ उदयस्थानों में से इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान विग्रहगति में वर्तमान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, असंज्ञी - संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच और मनुष्यों के होता है, ये सभी इक्कीस प्रकृतियों के उदय वाले जीव अपर्याप्त एकेन्द्रिय योग्य तेईस प्रकृतियों को बांध सकते हैं ।
चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान मात्र अपर्याप्त पर्याप्त एकेन्द्रियों के ही होता है, अन्यत्र नहीं होता है ।
पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त ( पर्याप्त नामकर्म के उदय वाले) एकेन्द्रिय और उत्तर वैक्रियशरीर करने वाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंचों के होता है । जो तद्योग्य क्लिष्ट परिणाम के योग में अपर्याप्त एकेन्द्रिययोग्य तेईस प्रकृतियों का बंध कर सकते हैं ।
छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त एकेन्द्रियों को, पर्याप्त अपर्याप्त यानि पर्याप्त नामकर्म के उदयवाले या अपर्याप्त नामकर्म के उदयवाले मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रियों को, तिथंच पंचेन्द्रियों को और मनुष्यों को होता है ।
सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त एकेन्द्रिय और मिथ्यादृष्टि वैक्रिय शरीर करने वाले तिर्यंच - मनुष्यों के होता है ।
अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतिक उदयस्थान मिथ्यादृष्टि पर्याप्त विकलेन्द्रिय ( सामान्य या वैक्रिय शरीरी) तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य को होता है ।
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