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________________ पंचसंग्रह : १० शब्दार्थ -- नवपंचोदयसत्ता-नौ उदयस्थान और पाँच सत्तास्थान, तेवीसे पण्णवीस छब्बीसे-तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान में, अट्ठ चउरट्ठवीसे- अट्ठाईस प्रकृतियों के बंध में आठ उदयस्थान और चार सत्तास्थान, नवसत्ति - नो उदयस्थान, सात सत्तास्थान, गुणतोसतीसे— उनतीस और तीस प्रकृतियों के बंध में, य-ओर । १६० , एक्क्के एक-एक उदय व सत्तास्थान, इगतोसे - इकत्तीस के बंध में, एक्के – एक के बंध में एवकुदय - एक का उदय, अट्ठ-आठ, संतंसासत्तास्थान, उवरयबंधे - उपरतबंध होने पर, दस-दस -- - दस, दस, नामोदयसंतठाणाणि - नामकर्म के उदय और सत्तास्थान होते हैं । गाथार्थ - तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतियों के बंध में नौ उदयस्थान और पांच सत्तास्थान होते हैं । अट्ठाईस के बंध में आठ उदयस्थान और चार सत्तास्थान होते हैं। उनतीस और तीस प्रकृतियों के बंध में नौ उदयस्थान और सात सत्तास्थान होते हैं । इकत्तीस के बंध में एक उदयस्थान और एक सत्तास्थान होता है। एक के बंध में एक उदयस्थान और आठ सत्तास्थान होते हैं तथा उपरतबंध होने पर नामकर्म के दस उदयस्थान और दस सत्तास्थान होते हैं । विशेषार्थ - नामकर्म के बंध, उदय और सत्तास्थानों का विस्तार से वर्णन पूर्व में किया जा चुका है । अतएव अब इन दो गाथाओं में नामकर्म के बंध, उदय और सत्तास्थानों का परस्पर संवेध बताया है कि किस बंधस्थान में कितने और कौन-कौन से उदय व सत्तास्थान अविरोधि रूप से होते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतियों के बंध में नौ-नौ उदयस्थान और पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं- 'नवपंचोदयसत्ता ।' इनमें से तेईस प्रकृतियों का बंध अपर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य है । जिससे अपर्याप्त एकेन्द्रिययोग्य बंध करने पर तेईस प्रकृतियों का बंध होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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