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( १५ ) सेन कृत द्वित्रिंशिका प्रकरण, आचार्य हरिभद्रसूरि कृत पंचाचक प्रकरण, विंशति-विंशतिका प्रकरण, षोडशक प्रकरण, अष्टक प्रकरण, आचार्य जिनवल्लभ कृत षड्शीति प्रकरण आदि अनेक रचनाओं को प्रस्तुत किया जा सकता है। कभी-कभी इच्छानुसार वर्तमान में पुस्तकों के नामकरण की तरह भी ग्रन्थ या प्रकरण का नामकरण कर लिया जाता था। इस तरह नामकरण के लिये कोई भी दृष्टि हो परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वर्तमान में जो पांच ग्रन्थ माने जाते हैं और जिन्हें कर्म विषयक मूल साहित्य कहा जा सकता है उनमें सप्ततिका भी एक है। क्योंकि सप्ततिका की गाथाओं में कर्म साहित्य का समग्र सार भर दिया गया है जिससे मूल साहित्य का कहा जाना उचित ही है।
कदाचित सप्ततिका यह नाम गाथाओं की संख्या के आधार से रखा गया मान लिया जाये, तथापि इसकी गाथाओं की संख्या के बारे में मतभेद है । अभी जो संस्करण उपलब्ध हैं, उन सब में इसकी गाथाओं की अलग-अलग संख्या दी गई है । श्री जैन श्रेयष्कर मंडल मेहसाना की ओर से प्रकाशित संस्करण में ९१ गाथायें हैं । बंबई से प्रकाशित प्रकरण रत्नाकर चौथा भाग में इसकी गाथाएँ ६४ दी गई हैं। आचार्य मलयगिरि की टीका के साथ श्री आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित में इसकी गाथाओं की संख्या ७२ दी गई है और चूणि के साथ श्री ज्ञान मन्दिर डभोई से प्रकाशित संस्करण में गाथाओं की संख्या ७१ बताई है। परन्तु यह चूणि ७१ गाथाओं पर न होकर ८६ गाथाओं पर है, इससे चूर्णिकार के मत से सप्ततिका की गाथाओं की संख्या ८६ सिद्ध होती है। दिगम्बर पंचसंग्रह में जो सप्ततिका प्रकरण संकलित है उसमें भाष्य सहित ५०७ गाथायें हैं। उनमें ७२ मूल गाथायें हैं। चन्द्रर्षि महत्तर द्वारा रचित पंचसंग्रह में इस प्रकरण की कुल गाथायें
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक सस्करण में गाथाओं की संख्या में भिन्नता है। इस भिन्नता के कारण के रूप में निम्न द्रष्टव्य है
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