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रखते हुए भाष्य गाथाओं की रचना द्वारा पल्लवित किया और दूसरे प्रकार के नाम अमितगति के संस्कृत पंचसंग्रह के आधार से उल्लिखित हैं। उन्होंने प्राचीन प्राकृत पंचसंग्रह का संस्कृत भाषा में कुछ पल्लवित पद्यानुवाद किया जिसमें उन्होंने ग्रन्थ के प्रारम्भ में नामों का उल्लेख किया है।
इस प्रकार से संक्षेप में दोनों जैन परंपराओं गत पंचसंग्रह का नामकरण के कारणोल्लेखपूर्वक परिचय जानना चाहिये।
जैसा कि पूर्व में संकेत किया गया है कि संप्रदाय-भेद के कारण ग्रन्थ के वर्ण्य विषय में भी भिन्नतायें आ गईं। इस दृष्टि से श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के पंचसंग्रहों में वर्णन की भिन्नतायें हैं। लेकिन अभी प्रसंग नहीं होने से यहां कुछ भी संकेत किया जाना अनुपयोगी है, ऐसा हम मानते हैं । विज्ञ पाठकगण जिज्ञासुवृत्ति से अध्ययन कर अपना मत निर्धारित करें, यह अधिक समुचित होगा। ___अब प्रस्तुत अधिकार के विषय में विचार करते हैं। सप्ततिका के संकलन का आधार
पूर्व में यह संकेत किया जा चुका है कि उपलब्ध जैन कर्म साहित्य के सकलन के आधार पूर्व हैं । अग्रायणीय पूर्व की पांचवीं वस्तु के चौथे प्राभूत के आधार से षटखंडागम, कर्मप्रकृति, शतक और सप्ततिका इन ग्रन्थों का संकलन हुआ । इनमें से कर्मप्रकृति यह ग्रन्थ श्वेताम्बर परम्परा में और षटखंडागम दिगम्बर परम्परा में माना जाता है तथा कुछ पाठ-भेदों के साथ शतक और सप्ततिका, ये दो ग्रन्थ दोनों परम्पराओं में माने जाते हैं।
प्राचीनकाल में ग्रन्थों या अधिकारों के नामकरण के विषय में विभिन्न दृष्टियाँ रही हैं। कभी तो वर्ण्य विषय को आधार बनाकर प्रकरण का नामकरण कर लिया जाता था और कभी गाथाओं या श्लोकों की संख्या के आधार पर भी नामकरण कर लिया जाता था। उदाहरण के रूप में आचार्य शिवशर्म कृत 'शतक', आचार्य सिद्ध
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